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________________ २९० भगवतीस अथ चतुर्थोद्देशकः प्रारभ्यते कुम्भिकसंबन्धिजीवरक्तव्यता। मूलम्-"कुंभिए णं भंते! एगपत्ता किं एगजीवे, अणेगजीवे ? एवं जहा पलासुदेसए तहा भाणियहे, नवरं ठिती जहपणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोलेणं वासपुहत्तं, सेसं तंचेव, सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।।सू० १॥ छाया--कुम्भिकः खलु भदन्त ! एकपत्रकः किम् एकजीवः. अनेकजीवः ? एवं यथा पलाशोदेशकस्तथा भणितव्यः, नवर स्थितिः जघन्येन अन्तर्मुहर्तम् , उत्कृष्टेन वर्पपृथक्वम् , शेपं तदेव, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्न ! इति । ।मु०१॥ टीका-अथ चतुर्थं कुम्भिको देशमाह-कुंभिए ण मंते । इत्यादि, गौतमः पृच्छति-'कुंभिए णं भंते ! एगपत्तए कि एमजीवे, अणेगजीवे?' हे भदन्त ! कुम्भिकः खलु वनस्पतिविशेपः एकपत्रका-एकपत्रावस्थायां किम् एकजीवो भाति ? किंवा अनेकजीवो भवति ? भगवानाह-एवं जना पलासुद्देसए तहा चोथे उद्देशेका प्रारंभ कुंभक संबंधी जीववक्तव्यता "कुंभिए णं भंते ! एगपत्तर" इत्यादि टीकार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्रद्वारा कुम्भिकोद्देशक का प्रतिपादन किया है। इसमें गौतम प्रभु से पूछते हैं-'कुंभिए ण भंते एगपत्तए कि एगजीवे, अणेगजीवे' हे भदन्त ! जो बनस्पति विशेष कुम्भिक वनस्पति है- वह जब एक पत्रावस्था में रहती है तब क्या वह एक जीव युक्त होती है अथवा अनेक जीव युक्त होती है ? इस के उत्तर में ચોથા ઉદેશાનો પ્રારંભ કુંભિસ્થજીવ વક્તવ્યતા "कुंभिएणं भंते ! एगपत्तए" त्यादि ટીકાઈ–હવે સૂત્રકાર સંગ્રહગાપ્ત થા કુંભિકે દેશકની પ્રરૂપણ કરે છે गौतम स्वाभान प्रश्न-" कुंभिएणं भंते । एगपत्तए किं एगजीवे, अणेग जीवे 7 8 लगवन् ! लि नामनी २ पनस्पति थाय छे, ते न्यारे मे પત્રાવસ્થામાં હોય છે ત્યારે શું તે એક જીવથી યુક્ત હોય છે? કે અનેક જીવથી યુક્ત હોય છે?
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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