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________________ प्रमेन्द्रका टीका श० ११ ४० १ सू० १ उत्पले जीवोत्पत्तिनिरूपणम् २७९ गौतमः पृच्छति - ' अह भंते । सव्वपाणा, सव्वभूया, सव्वजीवा, सव्वसत्ता, उत्पलमूलत्ताए, उप्पलकंदत्ताए, उप्पलनालचाए, उप्पलपत्तत्ताए, उप्पलकेसरत्ताए, उप्पलकन्नियत्ताए, उप्पलथिभुगत्ताए, उववन्न पुच्चा ? ' हे भदन्त ! अथ सर्वप्राणाः सर्वभूताः, सर्वजीवाः, सर्वसत्त्वाः, उत्पलमूलतया, उत्पलकन्दतया, उत्पलनालतया, उत्पलपत्रतया, उत्पलके सरतया, उत्पलकर्णिकतया, उत्पलवीजकेशरतया, उत्पलथिमुगतयेति उत्पलपत्रमूलस्थानतया किम् उपपन्नपूर्वाः ? पूर्व कदाचित् उत्पन्नाः ? भगवानाह - 'हंता गोयमा ! असइ अदुवा अणंतक्खुत्तो' हे गौतम! इन्त सत्यम् सर्वमाणादय उत्पलभूतादितया असकृत् अनेकवारम् अनन्तकृत्वः अनन्तवारम् पूर्वमुत्पन्नाः, इति त्रयत्रिंशत्तमं मूलादिषूपपावद्वारम् |३३| , अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' अह भंते । सव्वपाणा, सव्वभूया, सच्चजीवा, सव्वसत्ता, उप्पलमूलत्ताए, उप्पलकंदत्ताए, उप्पलनालत्ताए, उप्पलपत्तत्ताए, उप्पलकेसरत्ताए, उप्पलकन्नियत्ताए, उपलथिमुगन्ताए उववन्नपुव्वा' हे भदन्त ! क्या समस्त प्राण, समस्तभूत, समस्तजीव, समस्तसत्त्व, उत्पल के मूलरूप से उत्पल के कन्दरूप से, उत्पल के नालरूप से, उत्पल के पत्ररूप से, उत्पल के केशर रूप से, उत्पल की कर्णिका रूप से और उत्पल के धिमुगरूप से क्या पहिले कदाचित् उत्पन्न हो चुके हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'हंता, गोमा ! अस अदुवा अनंतक्खुत्तो' हां गौतम ! समस्त प्राणादिक उत्पल आदि रूप से अनेकवार अथवा अनन्तबार पहिले उत्पन्न हो 'चुके हैं । इस प्रकार से यह ३३ वां मूलादिकों में उत्पत्तिद्वार है |३३| गौतम स्वामीना प्रश्न - " अह भंते ! सव्वपाणा, सव्वभूया, सव्ब जीवा, सव्त्र सत्ता, उप्पलमूलत्ताए, उप्पलकंदत्ताए, उप्पलनालत्ताए, उप्पलपत्चत्ताए, उप्पटकेसरत्ताए, उप्पलकन्नियत्ताए, उप्पलधिमुत्ताए उववन्नपुव्वा ?" हे भगवन् ! શુ' સમસ્ત પ્રાળુ, સમસ્ત ભૂતા, સમસ્ત જીવે! અને સમસ્ત સત્ત્વા; ઉત્પલના મૂળ રૂપે ઉત્પલના કન્હ રૂપે, ઉત્પલની નાલ રૂપે, ઉત્પલનાં પાન રૂપે, ઉત્પલના કેશરરૂપે, ઉત્પલની કણિકારૂપે અને ઉત્પલના થિભ્રુગરૂપે પહેલાં કદી પશુ ઉત્પન્ન થઇ ચુકયા હૈાય છે ખરાં? " भहावीर प्रभुने! उत्तर– “हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतक्खुत्तो હા, ગૌતમ ! સમસ્ત પ્રાણુ, ભૂત, જીવ અને સત્ત્વા ઉત્પલના મૂળ આદિ રૂપે भने वार अथवा मनतवार पडेसां उत्यन्न थर्ध युभ्या होय छे, ॥ ३३ ॥
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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