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________________ २५६ भगवतीस्त्र ___ अथ एकोनविंश क्रियाद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'तेणं भंते ? जीवा कि सकिरिया, अकिरिया ? ' हे भदन्त । ते खलु उत्पलस्था जीवाः किं सक्रिया भवन्ति ? किंवा अक्रिया भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा। नो अकिरिया, सकिरिएवा, सकिरियावा १९' हे गौतम ! उत्पलस्थाजीवाः नो अक्रिया भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रावस्थायाम् जीवस्य एकत्वात् मक्रियोबा भवति, द्वयादिपत्रावस्थायांतु जीवानामनेकत्वात् सक्रिया वा भवन्ति। इत्येकोनविंशं क्रियाद्वारम् ।। १९ ॥ ____अथ विंशतितम बन्धकद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति- तेणं भंते ! जीवा कि सनविहबंधगा, अट्ठबिहबंधगा?' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः किं सप्तविध कर्मबन्धका भवन्ति ? किंवा अष्टविसमवन्धका भवन्ति ? भगवानाह____ अन्न उन्नीस में क्रियाद्वारको आश्रित करके गौतम प्रभुसे ऐना पूछते है-'तेणं भंते ? जीवा किं सक्लिरिया, अकिरिया, हे भदन्त ! उत्पलस्थ वे जीव क्या सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमानो अकिरिया, मकिरिए बा, सकिरिया वा' हे गौतम ! उत्पलस्थ वे जीव अभिया वाले नहीं होते हैं किन्तु उत्पल की एकपत्रावस्था में जीव की एकताबें वह जीव सक्रिय होता है और उत्पल की दयादिपत्रावस्था में वर्तमान अनेक जीवों के होजाने से वे सय जीव सक्रिय होते हैं। इस प्रकार से यह उन्नीसनां क्रियाद्वार है।।९। ___ अब गौतम स्वामी २० वें बन्धकदार को आश्रित करके प्रभु से ऐमा पूछते हैं-' तेणं भंते ! जीवा कि सत्तविह बंधगा, अविहवंधगा' हे भदन्त ! के उत्पलस्थ जीव क्या सात प्रकार के कर्मो के बंधक होते १६मा याद्वारनी प्र३५ ---गीतमा स्वाभीमा प्रश्न-" तेण भो ! जीव! कि सकिरिया, अकिरिया ?" भगवन् ! Guaना त । शु. सष्टिय હોય છે કે અક્રિય હોય છે? महावी२ प्रमुना उत्त२-" गोयमा! नो अकिरिया, सकिरिए वा, सकिरिया वा " गौतम ! G५सना ते ४ मठिय (ख्यिा २हित) होता નથી, પરંતુ એક પત્રાવસ્થાવાળા ઉત્પલમાં રહેલો એક જીવ સક્રિય હોય છે, અને ઉત્પલની અનેક પત્રાવસ્થાની અપેક્ષાએ તેમાં રહેલા અનેક જ સક્રિય 3य छे. ॥१६॥ २० भां माद्वारनी ५३५- गौतम स्वाभाना -" सेण भते ! जोवा किं सत्तविह बंधगा, अढविह बंधगा ?" उ समवन् ! Guarती ते જીવ સાત પ્રકારનાં કર્મોના બન્ધક હોય છે કે આ પ્રકારનાં કર્મોના બન્યક હોય છે ?
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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