SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ भगवतीने भगवानाइ-गोयमा! णो मण नोगी, णो वय जोगी, कायजोगी वा, कायजोगिणो वा १२' हे गौतम ! उत्पलस्था जीवाः नो मनोयोगिनो भवन्ति, नो वा वचोयोगिनो भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रतायाम् जीवस्य एकत्वात् काययोगी भवति, द्वयादिपत्रतायां तु जीवानाम नेकत्वात् काययोगिनो वा भवन्ति । इति द्वादशं योगद्वारम् १२॥ ____ अथ त्रयोदशमुपयोगद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-' ते णं भंते ! जीवा कि सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता?' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः किं साकारोपयुक्ताः भवन्ति ? किं वा अनाकारोपयुक्ताः मवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा! सागारोवउत्तेवा, अणागारोवउत्तेवा, अट्ट भंगा १३' हे गौतम ! उत्पलस्य एकपत्रतायां जीवस्य एकत्वात् उत्पलस्थो जीवः साकारोपयुक्तो वा भवति, १ अनाकारोप्रभु कहते हैं-'गोयमा! णो मणजोगी, णो वयजोगी, कायजोगी वा कापजोगिणो वा' हे गौतम! उत्पलस्थ वे जीवन मनोयोगी होते हैं, न बचनयोगी होते हैं किन्तु काययोगी होते हैं। उत्पल की एकपत्रावस्था में वर्तमान एक जीव कायजोगी होता है और उत्पल को अनेक पत्रावस्था में वर्तमान अनेक जीव सय काययोगवाले होते हैं। यह १२ वां योगद्वार है। ___ अब गौतम तेरहवे उपयोगद्वार को आश्रित करके प्रभु से ऐसा पूछते है-'तेणं भंते! जीवा कि सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता' हे भदन्त ! उत्पलस्थ वे जीव क्या साकारोपयोगवाले होते हैं अथवा अनाकारोपयोगवाले होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा? सागारोवउत्ते वा अणागारोवउत्ते वा अट्ठभंगा' हे गौतम! उत्पलस्य वे जीव साकारोपयोगवाले भी होते हैं और अनाकारोपयोगवाले भी होते महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा! णो मणजोगी, णो वयजोगी, काय जोगी वा कायजोगिणा घा” 8 गौतम! G५६५ ते ७ मनाया जाता નથી, વચનગી પણ હતા નથી, પરંતુ કાયાગ હોય છે. ઉત્પલની એક પત્રાવસ્થામાં ઉપલભ્ય એક જીવ કાયયોગી હોય છે અને તેની અનેક પત્રાવસ્થામાં તેમાં રહેલા બધાં જ કાયમી હોય છે. ૧૨ तभा उपयोदानी ५३५५। गोतम स्वाभान प्रश्न-"तेणं भते । जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता १ "लाव G५स्य । શુ સાકાશે પગવાળા હોય છે ? કે અનાકારપગવાળા હોય છે? महावीर प्रभुना उत्तर-- 'गोयमा ! सागारोवउत्ते वा, अणागारोवउत्ते १" वा अट भंगा" गौतम | Bruaस्थ व सारोपयोगवाणा पण हाय छ અને અનાકારોપગવાળા પણ હોય છે. એટલે કે ઉ૫લની એક પત્રાવસ્થા
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy