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________________ प्रमेयखन्द्रिका टीका श०११ उ०१ सू०१ उत्पले जीवोत्पातनिरूपणम् ३३५ 1 णिज्जस्स कम्मस्त किं वेदगा, अवेदगा ?' हे भदन्त ! ते खल्ल उत्पलस्था जीवा ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः किं वेदका भवन्ति ? किंवा अवेदका भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! णो अवेदगा, वेदएवा, वेदगावा, एवं जाव अंतराइयस्स' हे गौतम! उत्पलस्था जीवाः ज्ञानावरणीयस्य कर्मणो नो अवेदका भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रावस्थायाम् एकत्वात् जीवो वेदको वा भवति द्वयादिपत्रांस्थायां तु त्वात् जीवा वेदका चा भवन्ति, एवं - पूर्वोक्तरीत्या यावददर्शनावरणीयादारभ्य आन्तरायिकपर्यन्तानां कर्मणाम् उत्पलस्था जीवा नो अ दका भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रावस्थायाम् जीवस्य एकत्वात् वेदको भवति, द्वयादिपत्रावस्थायां तु जीवानामनेकत्वात् वेदका भवन्ति इति भावः । गौतमः पृच्छति - ' तेणं मंते ! जीवा किं सायावेयगा, असायावेयगा ? ' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलवर्तिनो जीवाः किं सातावेदकाः ? भवन्ति ? किंवा असाताहैं- 'तेणं भंते! जीवा णाणावर णिज्जस्स कम्मल किं वेदगा अवेदगा ?? हे भदन्त ! वे उत्पलाथ जीव क्या ज्ञानावरणीय कर्मके वेदक होते हैं या अवेदक होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोमा ! णो अवेदगा, वेदएवा, वेदगा वा, एवं जात्र अंतराइयस्स' हे गौतम! उत्पलस्थ जीव ज्ञानावरणीय कर्म के अवेदक नहीं होते हैं किन्तु उत्पल की एक पत्रावस्थामें एक जीव होने से वह जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदक होता है, तथा दयादिपत्रावस्था में जीवों की बहुता होने से वे सब जीव ज्ञानावरणीय कर्म के वेदक होते हैं इस प्रकार अन्तरायतक कह देना चाहिये । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'तेणं भंते ? जीवा सामावेगा, अमायावेघगा' हे भदन्त ! उत्पलवर्ती वे जीव क्या सातावेदनीय कर्म के वेदक होते हैं या असातावेदनीय कर्म के वेदक होते हैं ? इसके किं वेदगा अवेदगा ?' हे लगवन् ! उत्यवस्थ व शुं ज्ञानावरणीय अर्मना વૈદક હાય છે, અવૈદક હાય છે? भडावीर अनुना उत्तर - "गोयमा ! णो भवेदगा, बेदएव वा, वेदगा वा, एवं जाव अतराइयस्स " हे गौतम! अत्यवस्थ व ज्ञनावशीय अना આવેદક હાતા નથી, પરન્તુ ઉત્પલની એક પત્રાવસ્થામાં તેની અંદર રહેલે એક જીવ જ્ઞાનાવરણીય કના વેદક હાય છે, તથા ઢયાદિ પત્રાવસ્થામાં તેની અદર રહેલા અનેક જીવે. જ્ઞાનાવરણીય કર્મોના વેદક હાય છે એજ પ્રમાણે આંતરાયિક પન્તના કર્માંના વિષયમા પણ સમજવું. गौतम स्वाभीनो प्रश्न- " तेण भते ! जीवा किं खायांवेयगा, असायावेगा ?” हे लगवन ! उत्पनाते वो शु सातावेदनीय अर्चना वैद्य હાય છે, કે અસાતા વેદનીય ડમના વેદક હોય છે ?
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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