SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीस्ने यत् मध्ये सौधर्मावतंसक महाविमानम् तद् अर्द्धत्रयोदशानि अर्द्धत्रयोदशं येषु तानि च योजनशतसहस्राणि साईद्वादशयाननलक्षाणि आयामविष्कम्भेन देयपरिधिना प्रज्ञप्तम्, अथ प्रस्तुत विषयम् वनार्थमतिदेशगाथामाह-"एवं जह" इत्यादि, एवं जह मूरियाभे तहेव माणं तहेव उवत्राओ' एवमुक्तरीत्या यथा सूरियामे विमाने राजाश्नीयसूत्रोक्त प्रमाणमुक्तं तथैवास्मिन् सौधर्मावतंसके वक्तव्यम्, एवं यथा सरियामदेवस्य देवत्वेन तत्रोपरातः उक्तस्तथैवोपातः शक्रस्यात्र वक्तव्यः, 'अभिसे भो तहेव जह मुरियाभस्स' यया सूर्याभदेवस्य अभिषेका वर्णिता राजमश्नीये तथैवास्य शकस्याभिषेको वर्णनीयः । अलंकार अच्चणिया तहेव' यथा सूर्याभस्य अलंकारेति अलङ्कारवर्णनम् अर्चनिकेति अर्चनिकावर्णनम् राजप्रश्नीये आयामविरखंण' यह सौधर्मावतंसक महाविमान साढे बारह लाख योजन का लंबाई चौडाई में कहा गया है. इनी प्रस्तुत विषयकी सूचना निमित्त सूत्रकोर अतिदेश गाथा का कथन करते हुए कहते हैं-'एवं जहा सूरिया तहेव माण तहेव उववाओं' जिस प्रकार इस उक्त रीति के अनुसार सूरियाभ विमान के सम्बन्ध में राजप्रश्नीय सूत्रोक्त प्रमाण कहा गया है. उसी प्रकार से इस सौधर्मावतंसक महाविमान के सम्बन्ध में भी उक्त प्रमाण कहा गया जानना चाहिये. तथा जैसा सूरियाभ देव का देवरूप से वहाँ उपपात कहा गया हैं उसी प्रकार से यहां शक का भी उपपात जानलेना चाहिये । 'अभिसेओ तहेव जह सूरिभस्स' राजप्रश्नीय में सूर्याभ देव का जैसा अभिषेक वर्णित हुआ है वैसो ही शक के अभिषेक का वर्णन करना चाहिये। अलंकार अच्चनिया तहेव' जैसा राजप्रश्नीय में सूर्याभ देव के अलङ्कारो का वर्णन और सयसहस्साई आयामविक्खभेणं । ते सौधर्मावत' विमाननी मा मन પહોળાઈ ૧રશા સાડા બાર લાખ જનની કહી છે પ્રસ્તુત વિષયનું પ્રતિપાદન ४२॥ निमित्त सूत्र॥माडी नायनी था भूडी छ “ एवं जहा सूरियाभे तहेव माण तहेव उववाओं" राप्रश्नीय सूत्रमा सूरियाम विभाननु प्रभाए। કહ્યું છે, તે ઉપર્યુક્ત પ્રમાણ સૌધર્માવલંક મહાવિમાનનું પણ સમજવું. જેવું સૂર્યાભ દેવના દેવરૂપે તે વિમાનમાં ઉપપાત થવાનું કથન રાજપક્ષીય સૂત્રમાં કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ શર્કના સૌધર્માવલંસક વિમાનમાં ઉ૫પાત विषयः ४थन सभा “ अभिसेओ तहेव जह सरियाभस्स" २४ प्रश्नीय सूत्रमा સૂર્યાભદેવના અભિષેકનું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ શકના मनिषनु ५५ सभा “ अलंकार अच्चनिया तहेव" २४ प्रश्नीय સૂત્રમાં સૂર્યદેવના અલંકારનું તથા અનિકાનું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy