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________________ १९२ भगवतीस्त्र सकसि सीहासणंसि, तुडिएणं मद्धि सेसं जहा चमरस्स' हे भदन्त ! प्रभुःसमर्थः खलु किं शक्रो देवेन्द्रो देवराजः, मौधर्मे कल्पे, सौधर्मावतमके विमाने, सभायां सुधर्मायां, शके सिंहासने त्रुटिकेन सार्द्ध दिव्यान भोगभोगान् भुञ्जाना विर्तम ? भगवानाह-शेपंयथा चमरस्य प्रतिपादितं तथैव प्रतिपत्तव्यम् नवरं परियारो जहा मोउद्दे गए नवरं चमरापेक्षरा शक्रस्य वक्तव्यतायां विशेषस्तु केवलं परिवारोऽबसेयः स च शक्रपरिवारा यथा मोकादेशके तृतीयशतकस्य प्रथमो. दशके प्रतिपादितस्तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यः । स्थविराः पृच्छन्ति-'सकस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महाणो कइ अग्गम हिमीओ ? पुन्छा' भदन्त । सभाए सुहम्माए, सरति सीतासण सि, तुडिएण सद्धिं सेसं जहा चमरस्य' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवगज शक सौधर्मकल्प में सौधर्मावतं. सक विमान में बैठकर सुधर्माम्भा के बीच क्या अपने पूर्वोत त्रुटिक के साथ भोग भोग सकता है ? इलके उत्तर में प्रश्न कहते हैं-हे आर्यो ! जैमा पहिले चमर के संबंध में कहा गया है वैसा ही थाकी का कथन यहां पर जानना चाहिये. अर्थात् सुधर्मा सभामें भोग नहीं भोग सकता है 'नवरं परियारो जहा मोउद्देसए । परन्तु चमरकी वक्तव्यता की अपेक्षा शक्र की वक्तव्यता में परिवार को लेकर अंतर आता है शक्र का परिवार तृतीय शतक के प्रथम उद्देशकमें जैसा कहा गया है वैसा ही यहां पर समझना चाहिये। अब स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सकस्ल णं भते ! देविंदस्म देवर णो सोमरस महारणो स्थविशन प्रश्न-" पभूणं भंते । सक्के देविंदे देवराया, सोहम्मे कप्पे, सोहम्मव.सए विमाणे, सभाए सुहम्माए, सकसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं, सेसं जहा चमरस्स" 3 मावान् ! हेवेन्द्र, १२२८ २४, सौध८५मा, सौधर्माવતંસક વિમાનની સુધર્મા સભામાં પિતાના શક્ર નામના સિંહાસન પર વિરાજમાન થઈને પોતાના ત્રુટિકની (૧૨૮૦૦૦ દેવીઓના પરિવારની) સાથે ભેગો ભોગવી શકે છે ખરો ? મહાવીર પ્રભુને ઉત્તર-હે આ ! ચમરના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ उत्त२ मा पY समवे. “नवर परियारो जहा मोउद्देसए " ५२न्तु यमः ૨ના પરિવાર કરતાં શકના પરિવારમાં જે વિશેષતા છે, તે ત્રીજા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવી. (મોકા નગરીમાં આ ઉદેશાની પ્રરૂપણ થઈ હતી, તેથી આ ઉદ્દેશાને મકાઉદ્દેશક પણ કહે છે.) __स्थविशन। प्रश्न-“ सकस णं भंते ! देविंदरस देवरण्णा सोमस्स महारष्णो
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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