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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० १०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामप्रमहिषीनिरूपणम् १८५ प्रज्ञप्ता :, शेषं तदेव-पूर्वोक्तरीत्यैवारसेयम् । 'एवं गीयजसरस वि' एवंपूर्वोक्तरीत्यैव गीतयशमोऽपि चतस्त्र अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः शेषं कालबदबसे यम्इत्याह- 'सव्वे सि एण्मि जहा कालरस' सर्वेषाम् एतेषाम् पूर्वोक्तानां किन्नरकिम्पुरुषादीनां वक्तव्यता यथा कालस्योक्ता तथा वोध्या, 'नवरं सरिसनामियाओ रायहाणीओ, सीहासणाणि य सेसं तं चेव' नवरं-विशेषरतु-सदशनामिहाराज धान्यः, सिंहासनानिच सदशनामकानि अवसेथानि, शेषं तदेव-पूर्वोक्तदेव बोध्यम् । स्थविगः पृच्छन्ति-'चंदरून गं भंते ! जोइमिदस्स जोइसरण्णा पुच्छा' हे भदन्त ! चन्द्रस्य खलु ज्यौतिषेन्द्रस्य ज्योतिपिकराजस्य कति अग्रमहिष्य : प्रलप्ता : ? इति पृच्छा, भगवानाह-'अन्जो चत्तारि अग्गम हिसीओ पण्णतामो, हे आर्याः। चन्द्रस्य चतस्रः अग्रहिष्यः प्रज्ञप्ता', ही समझना चाहिये 'एवं गीयजमस्स वि' पूर्वोक्त पनि के अनुसार ही गीतयश के भी चार अग्रमाहिषियां कही गई हैं. इसके आगे का कथन काल के जैसा जानना चाहिये. यही बात 'लवेसिं एएसि जही कालस्स' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है अर्थात् किन्नर किंपुरुष आदि की वक्तव्यता कोल की वक्तव्यता जैसी प्रकट की गई है। 'नवरं सरिसनामियाओ, रायहाणीओ, सीहासणाणि य सेसं तचेव' इन सब की राजधानियां और सिंहासन जैसे इनके नाम हैं उसी के अल. सार हैं। बाकी का और मय कथन पूर्वोक्त जैसा ही है। अन्य स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'चंदस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरणो पुच्छा' हे भदन्त ! ज्योतिष्कों के इन्द्र और ज्योतिष्कों के राजो चन्द्र के कितनी अग्रहिषियां कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'अजो चत्तारि अग्गम हिसीओ पण्णताओ' हे आयो । ज्योतिषकों के વિષયમાં પણ સમજવું એટલે કે તેને પણ ચાર અમહિષીઓ છે, ઈત્યાદિ. ४थन पूरित पद्धति अनुसार सभा मे पात सूत्रारे “सव्वेसि एएसिं जहा कालस" मा सूपा द्वारा ४८ ४री छे. मा ४थननु तात्पर्य से छ કે કિપુરુષથી લઈને ગીતયશ પર્યન્તના ઇન્દ્રોની વક્તવ્યતા કાલેદ્રની વક્તવ્યતા अनुसार समावी. " नवर' सरिसनामियाओ रायहाणीओ, सीहामणाणि य सेस तचेव" ते मयां छन्द्रोनो नाम प्रमाणे ० तेभनी ४धानीमा मन तमना સિંહાસનનાં નામ સમજવા બાકીનું સમરત કથન પૂર્વોક્ત કથન પ્રમાણે સમજવું. હવે સ્થવિ તિશ્કેન્દ્રો વિષે નીચે પ્રમાણે પ્રશ્ન પૂછે છે"चंदस्स णं भंते । जोइसिंदस्स जोइसरण्णो पुच्छा" है भगवन ? योतिष દેના ઈન્દ્ર, જતિષ્કરાજ ચંદ્રને કેટલી અઝમહિષીએ છે? મહાવીર પ્રભુનો भ० २४
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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