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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामग्रमहिषीनिरूपणम् १७९ कालस्स तत्र खलु चतसृषु अग्रमहिषीपु मध्ये एकैकरपा : अग्रमहिप्या : एकैकं देवीसहस्रं परिवार : अज्ञप्त :, शेषं यथा कालस्य प्रतिपादितं तथैव प्रतिपत्तव्यम् तथाच-ताभ्यश्चतसृभ्योऽयमहिषीभ्य : एकैका अग्रमहिपी अन्यत् एकके देवीसहस्रं परिवारं विकुक्तुिं प्रभु : समर्था, एवमेव सपूर्वापरेण चत्वारि देवीसहस्राणि परिवारो भवति, तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्ग उच्यते इत्यादिक कालप्रकरणोक्तरीत्याऽवसेयम् । 'एवं माणिभद्दस्सवि' एवं पूर्णभद्रवदेव मणिभद्रस्यापि चतस्रोऽग्रमहिष्य : प्रज्ञप्ताः, अन्यत् सर्वं पूर्वोक्तरीत्या स्वयमूहनीयम् । स्थविरा : पृच्छन्ति-'भीमस्सणं भंते । रक्खसिंदस्स पुच्छा' हे भदन्त । भीमस्य खलु परिवार कालको अग्रनहिषियों की तरह एक २ हजार देवी का कहा गया है। इलले संबंधित आगे का और सब कथन फोल के प्रकरण में कथित कथन के अनुसार समझना चाहिये । तयाच इन चार अग्रमहिषियों में से एक २ अग्रमहिषी में अपनी विकर्षणा शक्ति द्वारा अन्य और एक हजार देवी परिवार को उत्पन्न करने की शक्ति है. इस प्रकार इसका देवी परिवार चार हजार का कहा गया है। यह देवी परिवार इसका त्रुटिक है। इत्यादि आगे का और अवशिष्ट कथन काल प्रकरण में कही रीति के अनुसार स्वयं लगाना चाहिये। 'एवं माणिभद्दस्त वि' पूर्णभद्र की तरह मणिभद्र के विषय में भी कथन जानना चाहिये-मणिभद्र की भी चार अग्रमहषियों कही गई हैं-इत्यादि रूप ले सब कथन कर लेना चाहिये । अब स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'भीमस्स णं भंते ! रक्खसि. दस्स पुच्छा' हे भदन्त ! राक्षलेन्द्र भीम की अग्रमहि पियां कितनी कही कालस्स" ते प्रत्ये: ममडिपीना हवीपरिवार पिशायेन्द्र जनी ममाही એની જેમ એક એક હજાર કહ્યો છે તેને અનુલક્ષીને બાકીનું સમસ્ત કથન પિશાચેન્દ્ર કાળના કથન પ્રમાણે સમજવું જેમકે...“તે ચાર અગ્રમહિષીમાની પ્રત્યેક અમહિષી એક એક હજાર દેવીની વિદુર્વણ કરી શકવાને સમર્થ હોય છે. તેથી ચારે અગ્રમહિષાએ કુલ ૪૦૦૦ દેવીઓની વિતુર્વણા કરી શકે છે. આ રીતે પૂર્ણભદ્રને દેવી પરિવાર ૪૦૦૦ દેવીઓને છે. એ દેવી સમૂહને જ તેનું ત્રુટિક કહે છે.” ત્યાર પછીનું સમસ્ત કથન પિશાચેન્દ્ર કાળના કથન मनुसार सभा. “ एव माणिभद्दस्स वि" पूलद्रना २१ मारामानु કથન પણ સમજવું
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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