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________________ भगवतीसूत्रे १५८ 'तत्थ णं एगमे गाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारो पण्णत्तो' तत्र खलु तासु चतसृषु मध्ये एकेकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहस्रं परिवारः प्रज्ञप्ताः । 'पभू णं ताओ एगमेगाए देवीए अन्नं एगमेगं देवीसहस्रं परियारं विउवित्तए' प्रभुः समर्था खलु ताभ्यः पूर्वोक्ताभ्यश्वतसभ्यः एकैका देवी अन्यत् एकैकं देवीसहस्रं परिवार विकुर्वितुम्-विकुर्वगया निष्पादयितुम् , एकैका देवी क्रियकरणशक्त्या एकैकं वैक्रियं देवीसहस्रं निर्मातुं किं समर्था इतिभावः। 'एवामेव सपुवावरेणं चत्तारि देविसहस्सा, सेत्तं तुडिए' एवमेव तथैव सपूर्वापरेण पौर्वापर्येण चतमृभिः रपि देवीभिः प्रत्येकं वैक्रियकरणद्वारा एकैकदेवीसहस्रस्य निर्माणे सति चत्वारि देवीसहस्राणि भवन्ति, तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्गः उच्यते। स्थविराः पृच्छन्ति-'पभू कनकलता, चित्रगुप्ता और वसुन्धरा तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगंसि देवीसहस्सं परिवारो पण्णत्तो' इन चार अग्रमहिषियों के बीच में एक एक देवी का एक २ देवी सहस्ररूप परिवार कहा गया है 'पभू णं ताओ एगमेगाए देवीए अन्नं एगमेगं देवीसहस्सं परियारं विउवित्तए' आर्यों ने प्रभु से पूछा हे भदन्त ! इन चार देवियों में से क्यो एक एक देवी ऐसी भी समर्थ है कि जो अपनी विक्रिया से एक एक देवी सहस्र (हजार) की निष्पत्ति कर सके ? 'एवामेव सपुवावरेणं चत्तारि देवी सहस्सा, से तं तुडिए' इसके उत्तर में प्रभु ने कहा- हां, आर्यो ! एक एक देवी एक २ हजार देवियों के परिवारको अपनी विक्रिया शक्ति से निष्पन्न करने में समर्थ है. इस प्रकार इन चार देवियों का देवी परिवार ४ हजार का हो जाता है. इस चार हजार देवी परिवार का नाम वर्ग है. अब स्थविर पूछते हैं-'पभू ण भंते! चमरस्स असु. एगमेगंसि देवीसहस्सं परिवारो पण्णत्तो" ते या२ ममहिषासोमानी प्रत्येक અગ્નમહિષીઓને એક એક હજાર દેવી પરિવાર કહ્યો છે. स्थविरोना प्रश्न-“पभूणं ताओ एगमेगाए देवीए अन्नं एगमेगं देवीसहस्सं परिवार विउवित्तए ?" હે ભગવન્! શું તે ચાર દેવીઓમાંની પ્રત્યેક દેવી પિતાપિતાની વૈકિયશક્તિથી એક એક હજાર દેવીઓની વિદુર્વણ કરી શકવાને સમર્થ છે? ___ मडावीर प्रभुने। उत्त२-:" एवामेव सपुवावरेणं च तारि देवी सरसा, से तं तडिए" उ माय! ते प्रत्ये, भमहिषी पातपातानी व शतिथी એકએક હજાર દેવીના પરિવારનું નિર્માણ કરી શકે છે આ રીતે તે ચારે અગ્રમહિષીઓને દેવી પરિવાર એકંદરે ૪૦૦૦ દેવીએ ને થાય છે. આ ચાર હજાર કેવીઓના પરિવારને ત્રુટિક (વર્ગ) કહે છે.
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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