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________________ प्रमेय बन्द्रिका टीका श०१० उ०४ सू०१ चमरेन्द्रादीप त्रायशिकनि रूपणम् १३१ आसीत् , न कदापि न भवति, अपितु सदैव भवति-नकदापि न भविष्यति-अपितु सर्वदेव भविष्यति, यावत् ध्रुवं शाश्वतम् नित्यम् , अव्युच्छित्तिनयार्थतया अनादिप्रवाहेण द्रव्यार्थिफनयेन अन्ये केचन ईशानस्य त्रायस्त्रिंशकाश्चयवन्ति, अन्ये केचन त्रायस्त्रिंशका उपपद्यन्ते न तु सर्वे सर्वथा समुच्छिद्यन्ते । गौतमः पृच्छति'अस्थि णं भंते ! सणंकुमारस्स देविंदस्स देवरण्णो पुच्छा' हे भदन्त ! सन्ति खलु सनत्कुमारस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य त्रायस्त्रिंशकाः देवाः त्रयस्त्रिंशत् सहायाः? इति पृच्छा, भगवानाह-'हंता, अस्थि ' हे गौतम ! हन्त सत्यम् सन्ति सनत्कु मारस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य आयस्त्रिंशका देवाः, गौतमः पृच्छति-से केणटेणं, जहा-धरणस्स तहेव एवं जाव पाणयस्स एवं अच्चुयस्स जात्र अन्ने उववज्जति' में सर्वदा विद्यमान रहता है, क्योंकि यह ध्रुव शाश्वत नित्य है यद्यपि वहां से अन्य कितनेक त्रायस्त्रिंशक देव चव जाते हैं और अन्य कितनेक प्रायस्त्रिंशक देव उत्पन्न होते हैं-फिर भी द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा से अनादि प्रवाह की दृष्टि से इनका सबका सर्वथा अभाव नहीं होता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' अस्थिण भंते ! सण. कुमारस्स देविदस्त देवरण्णो, पुच्छा' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार के सहायकभून तेंतीस त्रायस्त्रिंशक देव होते हैं क्या? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हां, गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार के सहा. यकभूत ३३ त्रायस्त्रिंशक देव होते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से केणटेणं भंते ! जहा धरणस्स तहेव एवं जाव पाणयस्स एवं अच्चुपस्स जाव अन्ने उववज्जंति' हे भदन्त ! ऐसा आप किस ત્રણે કાળમાં કાયમ રહે છે, કારણ કે તેમનું નામ તે યુવ, શાશ્વત અને નિત્ય કહ્યું છે. હા, એવું અવશ્ય બને છે કે કેટલાક ત્રાયસ્ત્રિ શક દે ત્યાથી વે છે અને કેટલાક ઉત્પન્ન પણ થતા રહે છે. દ્રવ્યાર્થિક નયની અપેક્ષાએ -અનાદિ પ્રવાહની દૃષ્ટિએ તેમને સૌને સર્વથા અભાવ સંભવી શકતો નથી. गौतम मीना -" अस्थिण भते ! सणकुमारस्सं देवि दस्स देवरणी पुच्छा" भगवन् ! देवेन्द्र, ४१२१४ सनमारना सहाय सेवा 33 श्रायः અિંશક દેવો હોય છે ખરા ? महावीर प्रभुने। त्त२-' ह ता, अस्थि "हा, गौतम! हेवेन्द्र देव સનસ્કુમારને સહાયભૂત થનારા ૩૩ ત્રાયશ્ચિંશક દેવો હોય છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" से देणठेण भते" या भगवन् ! मे આપ શા કારણે કહે છે કે દેવેન્દ્ર દેવરાય સનકુમારના સહાયભૂત ૩૩ ત્રાયશ્ચિશક દે હોય છે?
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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