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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०४ सू०१ चमरेन्द्रादीनां त्रायस्त्रिंशकनिरूपणम् १०९ रेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य त्रायस्त्रिंशकाः मन्त्रिकल्पा: गुरुकल्पाः देवाः प्रयस्त्रिंशत् परिमाणाः सहायाः सन्तीति ? इन्द्रभूति राह-' एवं खल्लु सामहत्थी । तेणं कालेणं, तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कायंदी नामं नयरी होत्था, वण्णओ' हे श्यामहस्तिन् ! एवं खलु निश्चयेन तस्मिन् काले, तस्मिन् समये इहैव तावत् जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे काकन्दी नाम नगरी आसीत् , वर्णकः, अस्याः वर्णनं चम्पानगरी वर्णनवदेव बोध्यम्, 'तत्थ णं कायंदीए नयरीए तायत्तीसंसहाया गाहावइ समणोबासगा परिवसंति' तनखलु काकन्यां नगर्या त्रयस्त्रिंशत संख्यकाः सहायाः साहाय्यकारिणो गाथापतयः श्रमणोपसकाः-श्रावकाः, परिवसन्ति, 'अट्टा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा जाव विहरंति' आढ्या:कारण से कहते हैं ? इसका उत्तर देते हुए इन्द्रभूति श्यामहस्ती अनगार से कहते हैं 'एवं खलु सामहत्थी' हे श्यामहस्तिन् ! सुनो मैं तुम से इस बात को कहता हूं जो इस प्रकार से है-'तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे मारहेवासे कायंदी नाम नयरी होन्था, वण्णओ' उस काल और उस समय में इसी जंबुद्धीप नामके द्वीप में भरतक्षेत्र स्थित काकंदी नामकी नगरी थी. इसका वर्णन चंपालगरी के वर्णन की तरह जानना चाहिये 'तत्थ णं कायंदीए नयरीए तायत्तीस सहाया गोहायई समाधासमा परिवसति' उस काकंदी नगरी में तेतीस ३३ श्रमणापासक श्रावक रहते थे. ये आपस में इतने सहृदय थे कि प्रति समय एक दूसरे के सुख दुःख का ध्यान रखते थे. इतना इनका मैत्रीभाव था. 'अडाजाव अपरिभूया' अभिगय जीवाजीवा, उवलઆપ શા કારણે કહે છે? કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અમરેન્દ્રને સહાયભૂત થનારા ૩૩ ત્રાયસ્ત્રિ શકે છે, એવું શા કારણે કહે છે? गौतम स्वामीन सपा-" एव खलु सामहत्थी" ७ श्यामस्ती ? तमा। मा प्रश्न उत्तर ३२ तमने तमनी पूथा ईधुत समी-" तेण कालेण तेण समएण' इहेव जवुद्दीवे दीवे भारहे वासे कायंदी नाम नयरी होत्था, घण्णओ" ते आणे गने ते समय भूदी नामना पन मरतक्षेत्रमा ४.a નામની નગરી હતી તેનું વર્ણન ઔપપાતિક સૂત્રમાં વર્ણવેલી ચંપાનગરીના વર્ણન प्रभारी सभा “तत्थ ण कार्य दीए नयरीए तायत्तीस सहाया गाहावई समणोवासगा परिक्स ति" ही नगरीमा 33 श्रभास श्राप २९ ता. तेमन એક બીજા પ્રત્યે એટલો બધે પ્રેમ હતો કે તેઓ હમેશા એક બીજાના સુખમાં मे मीलने म४४३५ यता उता." अड्डा जाव अपरिभूया"तो सामान्य स्थितिना
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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