SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १० उ० ३ सू० ३ भाषाविशेष निरूपणम् सा व्याकृता, यथा घटपटादयः अथवा व्याकृता-प्रकटार्थी, यथा-अहिंसा सर्वकल्याणकारीणी" इत्यादिरूपा ११। अव्याकृता-गम्भीरशब्दार्था यथा “संयतस्य महत्पापं प्रतिक्रमणकर्मणा" इति। अव्यक्ताक्षरमयुक्ता वा या भाषा उच्यते सो अव्याकृता भवति, यथा मम्मणादि बालभाषा १२। एवंरीत्या गाथाद्वयार्थव्याख्याय उपसंहरन्नाह-प्रज्ञापनी खलु एषा-प्रज्ञाप्यते-प्रकटीक्रियतेऽर्थोऽनया अर्थों का कथक होनेसे संशय का उत्पादक होता है। व्याकृता-लोक प्रसिद्ध शब्दार्थवाली भाषा जैसे-घट पट आदि रूप भाषा अथवा प्रकट अर्थवाली भाषा व्याकृता-भाषा-जैसे-अहिंसा सर्व कल्याणकारी है इत्यादि । अव्याकृता-गंभीरशब्दार्थवाली भाषा, जैसे "संयतस्य महत्पापं प्रतिक्रमणकर्मणा" यहां जय इस प्रकारका अर्थ किया जाता है कि प्रतिक्रमणरूप कर्म से संयत को बड़ा भारी पाप लगता है-तब यह यात सिद्धान्त मार्ग से प्रतिकूल पडती है इसलिये इस पदका वास्तविक अर्थ ऐसा नहीं है किन्तु और दूसरी तरह से है इस प्रकार विचार करने पर "स्व" पद को मध्यमपुरुष के एकवचन की क्रिया के रूप में और "संयत" पद को सम्बोधन में रख कर इसके गंभीर अर्थको निकोला गया है। तब फिर इस पद का अर्थ ऐसा हो जाता है कि हे संयंत! तुम प्रतिक्रमण कर्म से अपने पापकर्मको नष्ट करो. अव्याकृता भाषा में उसका अर्थ एकदम नहीं प्रतीत होता है । अथवा-अव्यक्त अक्षरोंवाली जो भाषो बोली जाती है वह अव्याकृता भाषा है. जैसे बालकोंकी तोतलो भाषा. इस प्रकार गाथा इयका अर्थ व्याख्यात करके . (११) व्याकृता- प्रसिद्ध शहा वाणी भाषा, "ड, १ " અથવા પ્રકટ અર્થવાળી ભાષા જેમ કે “અહિંસા સર્વકલ્યાણકારી છે.” (१२) अव्या-आली२ शतार्थवाजी भाषा भ “सयतस्य मह स्पाप प्रतिक्रमण कर्मणा" महीने मेव। अथ ४२वाभा माव, प्रतिभा રૂઘ કર્મ કરવાથી સંયતને ઘણું જ ભારે પાપ લાગે છે,”તો તે વાત સિદ્ધાન્તની वि३ साणे छे. ५१५ माडी " स्य" पहने भी पुरुष सवयननी ठियाने. રૂપે અને “સંત” પદને સ બેધન વિભક્તિમાં વાપરીને તેના ગૂઢ અર્થને આ પ્રમાણે પ્રકટ કરી શકાય–“હે સયત! તું પ્રતિક્રમણ કર્મ દ્વારા તારાં પાપ કને નષ્ટ કરી નાખ” આ પ્રકારની ગૂઢ અર્થ યુક્ત ભાષાને અવ્યાકૃતા કહે છે. તેનો અર્થ એકદમ નક્કી થતું નથી. અથવા અવ્યક્ત અક્ષરોવાળી જે ભાષા બેલાય છે, તે ભાષાને અવ્યાકૃત ભાષા કહે છે. જેમ કે બાળકની તેતડી બેલી,
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy