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________________ . मावतीस्त्र S,' : तएं णं जमालिस्स अणगारस्स एवं आइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स अत्यंगइया समणा निग्गंथा एयमद्वं सदति, पत्तियंति, रोयंति' ततःखलु जमाले. रनगारस्य एवं पूर्वक्तिरीत्या आचक्षाणस्य यावत् भापमाणस्य प्रज्ञापयतः प्ररूपयतः एतमर्थ नो क्रियमाणः कृत्तो भवति ' इत्याधुक्तमर्थम् अस्त्येकके केचन श्रमणा निर्गन्थाः श्रद्दधति, प्रतियन्ति, विश्वसन्ति, रोचयन्ति, रुचि विषयी कुर्वन्ति, ' अत्यगइया समगा निग्गंथा एयमढे णो सदहंति, णो पत्तियंति, णो रोयंति ' अस्त्येकके केचन श्रमणाः निर्ग्रन्थाः एतम) जमालेरनगारस्योक्तार्य नो श्रदधति, नो वा मतियन्ति उक्तार्थे विश्वसन्ति, नैप खलु उक्तार्थ रोचयन्ति रुचिविषयं कुर्वन्ति, ये खलु सिद्धान्तिनो निग्रन्थाः उक्तार्थं नो अधति, तेषामाण आदिको कृत आदि रूप कहने में विरोधापत्ति प्रदर्शित जमालिने की-'तएणं जमालिस्स अगगारस्स एवं आइक्खमाणस जाय परूवे. माणस्ल अत्धेगया समणा निग्गथा एपमह सद्दहंति, पत्तियति,रोयंति" इस तरहसे जब जमालिने अपने मन्तव्यको प्रकट किया. तय कितनेक श्रमण निन्धोंने तो उसके इस कथनको श्रद्धापूर्वक स्वीकार कर लिया उसे अपनी प्रतीति कोटिमें रख लिया और अपनी रुचिका उसे विषय बना लिया ' अत्यंगड्या समणा निग्गंधा एयम णो संदहंति, णो पत्तियंति, णो रोयंति' कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थोंने उसके इस " क्रियमाण आदि कृत रूप नहीं होते हैं " मन्तव्यको श्रद्धाकी दृष्टिसे नहीं देखा, उसे अपनी प्रतीति कोटिमें नहीं लिया और न उसे अपनी रुचिको विषय ही बनाया-क्योंकि इनका ऐसा आशय था कि जो માનવામાં જમાલી અણગારને વિરુદ્ધ લાગે છે તેથી તેઓ મહાવીર પ્રભુની भान्यताने असत्य माने छे. “तएणं जमालिस्त अणगाररस एवं इक्वं. माणस जाव पल्वेमाणस अत्थेगइया समणा निगंथा एयम सहइति, पत्तियति रोयति" मासी सारे न्यारे मा प्रभारी प्रयु, विशेष' ४थन द्वारा પ્રતિપાદિત કર્યું, પ્રજ્ઞાપિત કર્યું અને પ્રરૂપિત કર્યું, ત્યારે તેમને તે મંતવ્યને કેટલાક અણગારે શ્રદ્ધાપૂર્વક સ્વીકાર કર્યો, તેમને તેની પ્રતીતિ य अत तम ३२यु. ५२न्तु " अत्थेगइया समणा निग्गथा एयम णों सह ति, णो पत्तियति णो रोयति" ८४ श्रम निय यातना ते मन्त' । વને ( ક્રિયમાણ વસ્તુ કૃત હતી નથી ઈત્યાદિ પૂર્વોક્ત મંતવ્યને) શ્રદ્ધાની નજરે જોયું નહીં, તેમને તેની પ્રતીતિ થઈ નહીં અને તેમને તે રૂછ્યું નહીં. ' કારણ કે તેમને ભગવાન મહાવીરનાં વચનમાં અપાર શ્રદ્ધા હતી. તેઓ -
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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