SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 591
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९७०३३सू०१३ महावीरवाक्यंतिज्ञमालेरश्रमानित ५७३ च्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उगिण्हइ, उग्गिीहत संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ । तएणं तस्त जमालिस्त अणभारत तेहिं अरसेहिय विरसेहिय अंतेहिय, पंतेहिय, लूहेहिय, तुच्छहिय, कालाइकंतेहिय, पमाणाइतेहिय, सीतपहिय, पाणभोयणेहिं अण्णया कयावि सरीरगति विउले रोगाके पाउब्भूए उज्जले विउले पगाढे ककसे बहुए चंडे दुक्खे दुग्गे दुरहियासे । पित्तजरपरिगतसरीरे दाहबकतिए यावि विहरइ । तए णं से जमाली अणगारे वेयणाए अभिभूए समाणे समणे गिरगंथे सदाबेइ, सदान्ता एवं वयासी-तुझे णं देवाणुप्पिया ! मल सेजा संथारगं संथरेह।तए णं, ते समणा णिग्गंथा जमालिस्प्ल अणगारस्त एयमद्वं विणएणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जमालिस्स अणगाररस सज्जासंथारगं संथरेति । तए णं से जमाली अणगारे बलियतरं वेदणाए अभिभूए समाणे दोचंपि समणे निग्गंथे लद्दावेइ, सहावेत्ता दोच्चंपि एवं षयासी-मम णं देवाणुप्पिया ! सेज्जा संथारए किं कडे कज्जा ?। एवं वुत्ते समाणे समणा निरगंथा विति-भो सामी ! कीरइ । जए णं ते समणा निग्गथा जमालिं अणगारं एवं वयासी जो खल्लु देवाणुप्पिया णं सेजा संथारए कडे कज्जइ, तए णं तस्स जमलिएस अणणारल अयमेवार अज्झथिए जाव समुप्प. जित्था जं णं लमणे भगवं महावीरे एवं आइक्खड़, जाव एवं परूवेइ, एवं खल्लु बलमाणे चलिए उदीरिजमाणे उदीरिए
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy