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________________ प्रेमयन्द्रिका टी० सं०९ उ ०३३ ९०८ जमालेदीक्षानिरूपणम् ५१६ कुमारस्स माया ईमलक्खणेणं पडमाडरगं अगके से पडिन्छइ' ततः खलु सा जमाले क्षत्रियकुमारस्य माता हंसलक्षणेन हंसवत् शुक्लेन मचिन्हेन वा पटशाटकेन पटरूपः शाटकः पटशाटकः शाटकोहि शटनझारकोऽपि उच्यते अत स्तन्निरासार्थ पटग्रहणम् , अथवा शटको वस्त्रमात्रमुच्यते स च पृथुलः पटोऽभि धीयते इति पटशाटकः, तेन पट्टाम्बरेण अग्रकेशान् जमालेः शिरोरुहान् प्रती. च्छति-गृह्णाति, ' पडिन्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पकवालेइ' प्रतीप्य गृहीत्वा सुरभिगा गन्धोदकेन प्रक्षालयति, ' पावालेत्ता जग्गेहिं वरेहि, गंधेहि मल्लेहि, अच्चेइ ' प्रक्षाल्प अग्र्यैः प्रधानैः वरैः श्रेष्ठैः, गन्धैः परिमलैः, माल्यैः पुष्पादिस्रग्भिः अर्चति-पूजयति ' अञ्चित्ता सुद्धवस्थेणं बंधेइ, वंधित्ता रयणकरंडगंसि त्तियशुमारस्त साया हसलक्खणेणं पडसाडएणं अम्गकेसे पडिच्छ।' क्षत्रियकुमार जमालिके उन कतित अग्रकेशोंको उसकी माताने हंसके जैले अथवा हंसके चिह्नवाले पटशाटक-रेशमीतौलियांमें ले लिया यहां पर जो शाटकके साथ पट शन्द रखा गयाहै, उससे शटनकारक सहनेवाले शटकका व्यवच्छेद किया गयाहै. इससे पटरूपसे जो शाटक वह पद शाटक है ऐसा बोध होता है, पटरूप शाटक जिसे भाषामें तौलिया कहते हैं कहलाता है। अथवा शाटक नाम वस्त्र मोत्रका है। मोटा जो वस्त्र होता है वह पटशाटक कहा गया है। ऐसा पटशाटक तौलिया रूप वस्त्र होता है । 'पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ' तौ. लियामें रखकर फिर उसने उन्हे सुरभि गंधोदकसे प्रक्षालित किया 'पक्खालेत्ता' प्रक्षालित करके उसने 'अग्गेहिं ' प्रधान 'वरेहि। श्रेष्ठ 'गंधेहिं ' गन्ध द्रव्योंसे और 'मल्लेहि 'मालाओंसे ' अच्चेइ' माया हंसलक्खणेण पडसाडएण अग्गकेसे पडिच्छइ” क्षत्रियकुमार मीना અગ્રકેશને તેની માતાએ હંસના જેવા સફેદ રેશમી ટુવાલમાં (પટશાટકમાં) અથવા હંસના ચિહ્નવાળા રેશમી ટુવાલમાં લઈ લીધા અહીં જે શાટકની સાથે પટ શબ્દ રાખવામાં આવ્યા છે, તેના દ્વારા શટનકારક શાકનો વ્યવ છેર કરવામા આવેલ છે. તેથી “પટ રૂપ જે શાટક તેને પટશાટક કહે છે - એવો બંધ થાય છે. તે પટરૂપ શાટકને હિન્દી ભાષામાં તૌલિયા ( ટુવાલ) કહે છે. અથવા દરેક વસ્ત્રને શ ટક કહે છે અને જાડા અને પટશાટક કહે छ. “ पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएण पक्खालेइ " टुवासभा ने तो पाने शुद्ध सुगन्धित थी घाया. " पखालेता" घन तो “ अग्गेहिं " प्रधान (भुज्य) “परेहिं” श्रेष्ठ “ गधेहि " भुगन्धित ०२॥ ५ अने। "मोदि" भातास 43 " अच्चेइ " तनी पूल ४0. “ अच्चित्ता" yon
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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