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________________ ५१४ भगवतीसूत्रे हृष्टतुष्टः करतल यावत् शिरसावत मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् - हे स्वामिन्! ' तदेइ ' तथेति - एवमेवास्तु इत्युक्त्वा या विनयेन पचनं प्रतिगोति-स्वीकरोति 'पडिसृणेता सुरभिणा गंधोदरण हत्थपाएपक्खाले, पक्वालेचा मुद्दार अडपडला पोत्तीए मुह वथइ, वंचिता' प्रति श्रुत्य जमालेः पितुर्वचनं स्वीकृत्य सुरभिणा सुगन्धिना गन्धोदकेन हस्तपादं प्रक्षा वरति प्रक्षाल्य शुद्धमा अत्यन्त पवित्री भूतया अष्टपदलया अष्टगुणावत्तया अष्टघुटका सुखकिया मुखं बध्नाति मुखं वध्वा - जमालिस्म खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तेगं चउरंगुलवज्जे निम्खमणपपाउगे अगकेसे कपइ' जमालेः क्षत्रियकुमारस्य परेण यत्नेन अत्यन्त सावधानतया चतुरङ्गुलवन् चतुरङ्गुल प्रमाणान् विहाय निष्क्रमणपायोग्यान् दीक्षाप्रसङ्गयोग्यान् अग्र केशान्, अग्रभूताः केशाः, अग्र के शास्तान् प्रतिकल्पयति- प्रतिकर्त्तयति, ' तरणं जमालिस्स खत्तियकहा तो वह बहुत खुश हुआ एवं आनन्दित चित्त होकर उसने दोनों हाथ जोडे - विनयावनत होकर हे स्वामिन् ! जैसा आप कहते हैं मैं उसी प्रकारले करूंगा ऐसा कहा - कह करके उनके वचनोंको स्वीकार किया 'पडित्ता सुरक्षिणा बोदणं इत्थपाए पक्खालेड़, पक्खालेत्ता सुखाए अट्टपडलाए पोतीए मुहं बंधइ, बंधिता ' स्वीकार करके फिर उसने अपने दोनों हाथों को सुगंधित जलसे धोकर शुद्ध किया. शुद्ध करके फिर उसने अपने मुहको कपडेकी आठ पुडवाली शुद्ध पट्टी करके यांधा, बांध कर ' जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणं जणं चरंगुलवज्जे निचमणप्पाग्गे अग्गकैसे कप्पइ ' क्षत्रियकुमार ज मालिके चार अंगुल छोडकर शोके अग्र केशोंको इस तरहसे कतरा कि जिनसे वे दीक्षा के प्रतङ्गके योग्य बन गये, 'तएण जमालिस खપુલકિત હૃદયે ત્રિનયપૂર્ણાંક બન્ને હાથ જોડીને તેમને આ પ્રમાણે કહ્યું~~ 66 तहत्ताणाए विणएण वयणं पडिसुणेइ " आपनी आज्ञा भाथे थडावुं छु " पडणेत्ता सुरभिगा गोदण हत्यपाए पक्खालेद, पक्खालेत्ता सुद्धाए अट्ठ पलाए पोत्तीए मुह बंबई, बंधित्ता " त्यारमाह तेथे सुगंधित भजथी पोताना અન્ને હાથને ધાયા, હાથને સાફ કરીને તેણે આઠ પડવાળી કપડાની શુદ્ધ यट्टी भुम पर गांधी, गाधीने " जमालिस खतियकुमारस्स परेण जत्तेण चउ 'गुलज्जे निक्खमणवाउगे अगकेसे कप्पइ " तेथे क्षत्रियकुमार भासीना ચાર અ‘ગુલપ્રમાણુ કેશ સિવાયના ખીના અગ્રકેશે ને બહુ જ જતનપૂર્વક કાપીને પ્રવજ્યાને યાગ્ન મનાવી દીધા. तरण जमालिस खत्तियकुमारस्व 1
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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