SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 525
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयचन्द्रिकाटीका श०९ उ. ३३ स०९ जमालेदीक्षानिरूपणम् ५०७ मयानां कलशानाम् अष्टशनेन भौमानां भूमि विकाराणाम् मृन्मयानामित्यर्थः कलशानाम् , सर्वदा समस्तच्छत्रादिराजचिन्हरूपया, यावत् सर्वधुन्या आभरणादि सम्बन्धिन्या, सर्ववलेन सर्वसैन्येन, सर्वसमुदायेन पौरादि मेलनेन, सर्वाचित अन्यकरणरूपेण सर्वैश्वर्येण, सर्वविभूत्या सर्व सम्पदा, सर्व विभूपया सकलशोभया, सर्व संभ्रमेण प्रीतिकृतौत्सुक्येन, सर्व पुष्पगन्धमाल्यालंकारेण, सर्वतुर्यशब्दसंनिनादेन, महत्या ऋचा, महत्या धुत्या, महतावलेन, महता समुदयेन, वरंतुर्ययमकसमकमादितेन, शङ्ख-पणत्र-पटह-भेरी-झल्लरी-खरमुखी-मुरज-मृदङ्गदुन्दुभि-निपिनादितेन रवेण महता निष्क्रमणाभिषेकेण प्रव्रज्याग्रहणाभिषेकसामग्या अभिषिञ्चा, अभिसिचिना करयल जाव जपणं विजएणं बद्धावेति' शतेन रूपमणिमयानां कलशानाम् ' तथा 'सबिड्डीए जाव', जो यावत् पद है उससे समस्त छत्रादि राजचिह्न रूप सर्वद्धि के अतिरिक्त यह पाठ और गृहीत हुआ है-" सर्वात्या, सर्वचलेन, सर्वसमुदथेन, स्ववीर्येण, सर्वविभूत्या, सर्वविभूषया, सर्वसंभ्रमेण, सर्बपुष्पगंधमाल्या. लंकारेण, सर्वतुर्यशब्दसंनिवादेन महत्या कळ्या, महत्या युत्या, महता घलेन, महता समुदघे, वरतूर्य यमक समकप्रवादितेन, शङ्खपणवपटहभेरी झल्लरी-खरसुही-लुरज-मृदङ्ग-दुन्दुभिनिर्घोषनादितेन रवेण" 'अभिसिंचित्ता करयल जाव जएणं विजएणं बद्धावेंति' अभिषेक करने के घाद उन्होंने अपने दोनों हाथोंकी अंजलि बना कर उसे मस्तक पर तीन बार घुमाया और फिर जय विजय इस प्रकारके शब्दोंका उन्होंने उच्चारण करते हुए अपने पुत्र क्षत्रियकुमार जमालि को बधाई दी। मणिमयानां कलशानाम् " तथा सविड्ढीए जाव" ॥ सूत्र शनी साथेर " जाव ( यावत् )" ५६ने प्रयास ४२वामा म.ये। छ, तना द्वारा समस्त છત્રાદિ રાજચિહ્ન રૂપ અમૃદ્ધિ ઉપરંત આ સૂત્રપાઠ પણ ગ્રહણ કરવામાં मान्य छ-- ___ " सर्वश्रुत्या, सर्ववलेन, सर्वसमुदयेन, स्ववीर्येण, सर्व विभूत्या, सर्वविभू. पया, सर्व संभ्रमेण, सर्व पुष्पगंधमाल्याल कारेण, सर्व तुर्य शब्दसंनिनादेन, महत्या ऋद्धया, महत्या, द्युत्या, महता वलेन, महता समुहये, वरतुर्ययमकसमकप्रवादितेन, शंख पणव पटह भेरी-खल्लरी-खरमुही-मुरज-मृदग-दुन्दुभिनि?षनादितेन रदेण" ___“ अभिसि चित्ता करयल जाव जएणं विजएणं वद्धाति” अनि शन તેમણે પિતાના બને હાથ જોડીને અને તેને મસ્તક પર ત્રણ વાર આવર્તન (धुभावपानी लिय) ४शन क्षत्रियभार माली “orय , वियो "
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy