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________________ प्रमेयचन्द्रिका डी० श०२ १ ०३३ सू०७ जमालिवक्तव्यनिरूपणम् ४६३ भूत्तभोगी विसयविगय बोच्छिन्न कोउहल्ले अम्हे हि कालगएहिं जाव पव्वहिसि' तत् पश्चात् कामभोगपरिभोगानन्तरम् भुक्तभोगी विषयविगतव्यवच्छिन्नकौतूहला, विषयेषु शब्दस्पर्शरूप रसगन्धेषु एतेभ्यो वा विगतव्यवच्छिन्नम् - अत्यन्तक्षीणं कौतूहलं कुतुकं यस्य स तथा, कालगतेषु मरणधर्म पाप्तेषु सत्सु यावत् परिणतवया वद्धितकुलवंगतन्तु कार्ये निरपेक्षः सन् श्रमणस्य भावतो महावीरस्य अन्तिके मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रजिष्यसि । ।।१०६।। मूलम्-तएणं से जमालीखत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं क्यालीतहावि णं तं अस्मताओ ! जं णं तुन्भे ममं एवं वयहइमाओ ते जाया विपुलकुल जाव पवइहिसि, एवं खल्लु अम्मताओ ! माणुस्सया कामभोगा, असुई असासया वंतासवा, पित्तासवा, खेलासबा, सुक्कासवा, सोणियासका, उच्चारपालवणखेलसिंघाणगवंतपित्तपूयसुक्कसोणियसमुन्भवा अमणुन्नदुरूवमुत्तपूइयपुरीसपुन्ना मयगंधुस्तासा असुभभोगों को भोगो ‘तओ पच्छा भुत्तभोगी विसयविगधयोच्छिन्नको उहल्ले अम्हे हिं कालगए हिं जाव पव्वाहिसि' इसके बाद भुक्त भोगी हुए तुम शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध इन विषयों में अत्यन्त निस्पक वृत्तिवाले-चाहना विनाके हो जावोगे-इस ओर तुम्हारा मन वितृष्ण हो जावेगा-तृष्णा रहित हो जायेगा, अतः तुम हम लोगों के परलोक हो जाने पर परिणतवयमें वदित हुए कुलवंश रूप तन्तु कार्य में निरपेक्ष होकर श्रमण भगवान महावीर के पास संघम धारण कर लेना ॥०६॥ १ सपा विधुत महागाने पडेai तो तुवी से “तओ पच्छा भुत्तभोगी विस्यविगययोच्छिन्नकोउइल्ले अम्हेहि कालगएहि जाव पवाहिसि" આ પ્રમાણે કામગીને ભેળવીને, તું શબ્દ, સ્પર્શ, રૂપ, રસ અને ગબ્ધ माहि विषय प्रत्ये नि:स्पृ-याना विनाना मनी ४४. ते विषयोहास' तारी मासहित २३ २४ नही. त्यारे समा२। भरए माह - जमालिने शर वृद्धावस्थामा ससारिश ४थी निरपेक्ष नीवयासी तहा वि यणं महावीरनी सभी सयम २०२ ४२१. सउल कुलं जाव पव्वइहिसि"
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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