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________________ भगवतीसूत्र कलझुलशीलशालिन्य तत्र अविफलस्-उद्विपरिपूर्ण बुलं यासां ताः अविकलकुलाः ताश्चताः शीलशालिन्यत्र शीलशोभिन्य इतिता स्तथा, 'विमुद्धकुलवंससंताणतंतुय द्वाप्प गशु मवपभाविणीओ' विशुद्धकुलवंशमन्तानतन्तुनमगर्योदरममाविन्यः, विशुदूकुलवंशसन्तानानां यः तन्तुः-परम्परा, तस्य बर्द्धनाः वर्धका ये प्रगर्मा-प्रकृष्टा गर्माः तेपां य उद्भव =उत्पत्तिस्तत्र यः प्रभावः सामयंस यासापति तार तथा । 'मणोणुकूलहियइच्छियाओ' मनोऽनुकूलहदयेप्सिताः, मनोऽनुकूलाचता हृदयेनेपिसताश्च तास्तथा, 'अद्वैतुज्झ गुगवल्लहाओ उत्तमामो निच्चं भावानुत्तरसम्यगसुंदरोभो भारियाओ' अष्ट अष्ट संत्यकास्तत्रगुणवल्लभाः गुणः शोल सीन्दादिमिल्लमा अत्यन्तप्रियाः उतमा श्रेष्ठाः नित्यं सर्वदा भावानुत्त. रसङ्गिसुन्दर्यभावेन हावभावमाश्रित्य अनुत्तरा उत्कृष्टाचताः सर्वाङ्गै सुन्दर्यश्चति भावानुत्तरसर्वाङ्गसुन्दर्यः भार्या स्त्रियः सन्ति 'तं भुजाहि ताव जाया ! एताहिं सद्धि विउले माणुस्सए कानमोगे' हे जात ! हे पुत्र! तत् तस्मात् कारणात् भुक्षा परिमुव तारन एताभि अराभिः पूर्वोक्ताभिर्माभिः सार्द्धम् त्रिषु लान् पुष्कलान् मानुष्यमान मनुष्यसम्बन्धिनः कामभोगान् , 'तो पच्छा शील से शालिनी हैं 'विसु कुलपलसंतागतंतुबद्धणप्पगम्भुभवपभाविगी मो' जिनका सामर्थ्य विशुद्ध कुल वंशलतानों की परम्परा को बढानेवाले उत्तम गर्भो के धारण करने का है, 'मगोणुक्ल हिय. इच्छिया भो' जो मन के अनुकूल होने से हृदय को बहुत अधिक प्रिय लगती हैं, 'अतुन्ज गुगवलदाओ उत्तताओ निच्च भावानुतर सव्यंगसुंदरीओ भारियाओ' ऐसी जो ये शील सौन्दर्य आदि गुणोंसे अत्यन्त प्रिय उत्तम हाव भावकी अपेक्षा सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वाग सुन्दर तुम्हारी आठ स्त्रियां हैं ' तं सुंजाहि ताय जाया ! एयाहिं सद्धि विउले माणुस्सए काम भोगे' पहिले इनके साथ मनुष्यभव संबंधी विपुल कामउत्तम यी सपन्न छ, 'विसुद्धकुलवंससंताणत तुबद्धणप्पगम्भुभवप. भाविगी भो" विशुद्ध सश-सतानानी ५२ ५२॥ धान।२। उत्तम गलाने धारय ४२वाने में समर्थ छ, “ मगोणुकूलहियइच्छियाओ" २ भनने मनु वाथी हुयने प्रिय दो छ, “ अटू तुज्ज्ञ गुणाल्लहा मो उत्तमाओ निचं भावानुत्तरसव्वंगसुदरीओ भ रियाओ" या शस, सौय' આદિ ગુણેથી અત્યંત પ્રિય અને ઉત્તમ હાવભાવ આદિની અપેક્ષાએ સર્વે स्ट भने स४ि२ छ, मेवातारी मा8 मार्याशा छ, “त' भुजाहि ताव जाया ! एयाहि सद्धि' विउले माणुस्सए कामभोगे" तमनी स.थे मनुष्य
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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