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________________ प्रमैयचन्द्रिकाटीका श०९उ०३३०५ जमालिवक्तव्यनिरूपणम् स्थति, वन्दित्वा नमस्यित्वा तमेव पूर्वोक्तमेव चातुर्घण्टं चतुर्घण्टोपेतम् अश्वस्थम् आरोहति-' दुरुदित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स ऑतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिकाखमइ ' अश्वरथमारुह्य श्रमणस्य. भगवतो महावीरस्य अन्तिकात् बहुशालकाय चैत्यात्-उद्यानात् प्रतिनिष्क्रामति निर्गच्छति' पडिनिक्खमित्ता सकोरंटजाव धरिज्जमाणेणं महया भडचडगर जाव, परिक्खित्ते जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ "प्रतिनिष्क्रम्य सकोरण्ट - यावत् कोरण्टनामकपुष्यमाल्यदाम्ना सहितेन ध्रियमाणेन, छत्रेण 'उपलक्षितो महता वृहता भटानां चटकर यावत् पहकन्देन परिक्षिप्तः परिवेष्टितो यत्रत्र क्षत्रिय कुमारग्राम नगरं तत्रवोपागच्छति, ‘उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झं मज्जेणं जेणेव सए गिहे जेणेत्र बाहिरिया, उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छ " नमस्कार करके फिर उनके पाससे उस ओर आया कि जहां पर उसका वह चार घंटोंघाला अश्वरथ रखा हुआ था. वहां आकर वह उस पर सवार हो गया 'दुरुहिता समणस्स भगवओ-महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ, वेड्याओ पडिनिक्खभइ' सवार होकर वह. अषण भावान् महावीरके पाससे और उस बहुशालक वनसे चल दिया-डिनिक्खमित्ता सकोरंट जाव धरिज्जमाणेणं महया जाव भडचडगर परिक्खित्ते जेणेव खत्तियकुंडग्गामे - नयरे, तेणेव उवागच्छइ.' ज्योंही वह अश्वरथ पर सवार हुआ कि छत्रधारियोंने उस पर कोरंट पुष्पकी मालाओंसे विभूषित छत्र तान दिया: बड़े-२ योधा - उसके पास आ गये-इस तरह योधा और महायोधाओंके समूहसे घिरा हुआ होकर वह क्षत्रियकुण्डग्रामकी ओर चल दिया, 'उवागच्छित्ता खत्ति कुण्डग्गामं नयरं मज्झं मज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उमट्ठागઘટડીવાળે રથ ઊભે હતા ત્યાં ગયે. ત્યાં જઈને તે રથમાં બેસી ગયા. " दुरुहित्ता समणस्स - भगवओ महावीरस्स अतियाओ, बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ”, २थमा सवार थने ते श्रभार समकान मडावीरनी पासथा तथा मgas Gधानमाथी २वाना था..," पडिनिक्खमिता सकोरंट जाव धरिज्जमाणेणं महया भडचडगर जाव परिक्खित्ते जेणेव खत्तियकु डग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छद" रथमा सवार थतांनी साथे छत्रधारीमा- तेना ७५२ કરંટ અપની માલાઓથી સુશોભિત છત્ર ધારણ કર્યું અને મોટા મોટા ચોદ્ધાએ તેની પાસે તેની રક્ષા માટે ઉપસ્થિત થઈ ગયા. આ રીતે દ્ધાઓ અને સુભટના સમૂહથી ઘેરાયેલે તે ક્ષત્રિયકુંડગ્રમ નગર તરફ આગળ વ. .. "उवागच्छित्ता 'खत्तियकु डग्गाम: नयर मजा-माझेणं जेणेव सप. गिहे
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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