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________________ भगवतीसरे तथाहि-द्वौ एकेन्द्रियेषु १, द्वौ द्वीन्द्रियेषु २, द्वौ त्रीन्द्रियेषु ३, द्वौ चतुरिन्द्रियेषु ४, द्वौ पञ्चेन्द्रियेषु ५। इति पञ्चभङ्गाः ५ ॥ अथ द्विकसंयोगिभङ्गानाह'अहवा एगे एगिदिएस होज्जा, एगे बेइंदिएमु होज्जा' अथवा एकस्तियग्योनिकः एकेन्द्रियेषु भवति, एकः अपरस्तियंग्योनिको द्वीन्द्रियेषु भवति । . : तदेव प्रश्यते--- एकेन्द्रियेषु द्वीन्द्रियेषु १, द्वीन्द्रियेचु-चतुरिन्द्रियेषु ६, एकेन्द्रियेषु त्रीन्द्रियेषु २, द्वीन्द्रियेषु-पश्चेन्द्रियेषु ७, एकेन्द्रियेषु चतुरिन्द्रियेषु ३, त्रीन्द्रियेपु-चतुरिन्द्रियेषु ८, एकेन्द्रियेषु पञ्चेन्द्रियेषु, ४, त्रीन्द्रिीयेषु-पञ्चेन्द्रियेषु ९ द्वीन्द्रिीयेषु त्रीन्द्रियेषु ५, चतुरिन्द्रियेपु-पश्चेन्द्रियेषु १० में भी होते हैं। इनमें पांच भङ्ग इसी प्रकार से होते हैं-दो नियंग्यो निक जीव एकेन्द्रियों में होते हैं १, अथवा दो तिर्थग्योनिक जीव दो इन्द्रियों में होते हैं २, अथवा दो तिर्यग्योनिक जीव तेइन्द्रियों में होते हैं ३, अथवा दो तिर्यग्योनिक जीव चौइन्द्रियों में होते हैं ४, अथवा दो तिर्थयोनिक जीव पंचेन्द्रियों में होते हैं ५, इस प्रकार से ये दो तिर्यग्योनिक जीवों के एकत्व में पांच भंग होते हैं अब इनके हिकसंयोगी भंगों को प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं-(अहवा एगे एगिदिएसु होज्जा, एगे वेइंदिएसु होज्जा) अथवा दो तियग्योनिक जीवों में से एक तियंग्योनिक जीव एकेन्द्रियों में होता है और एक दो इन्द्रियों में होता है ५, अथवा-एक तिर्यग्योनिक जीव एकेन्द्रियों में होता है दूसरा एक तेइन्द्रियों में होता है २, अथवा-एक तिर्थग्योनिक जीव एकेन्द्रियों में होता है दूसरा एक चौ इन्द्रियों में होता है ३, अथवा-एक तिर्थयोनिक जीव एकेन्द्रियों में होता है, दूसरा एक पंचेन्द्रियों में होता ન્દ્રિમાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે અહીં પાંચ એકસંગી ભંગ બને છે હવે સૂત્રકાર તેમના બ્રિકસંયોગી લંગોનું કથન કરે છે– ___अहवा एगे एगि दिएसु होजा, एगे वेइदिएसु होजा" अथवा रे તિનિક જમાંથી એક તિર્થનિક જીવ એકેન્દ્રિમાં ઉત્પન્ન થાય છે અને બીજે દ્વિદ્રિમાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૨) અથવા એક એકેન્દ્રિયામાં ઉત્પન્ન થાય છે અને એક ત્રિન્દ્રિમાં ઉત્પન્ન થાય છે (૩) અથવા એક તિયોનિક જીવ એકેન્દ્રિયોમાં ઉત્પન્ન થાય છે અને એક ચતુરિન્દ્રિમાં (૪) અથવા એક એકેન્દ્રિયોમાં અને એક પંચેન્દ્રિયોમાં ઉત્પન થાય છે. (૫)
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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