SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ भगवतीसूत्रे __ _......... .. इति क्रमेण रत्नप्रभामाधान्ये पट ६, शर्करा प्रभा प्राधान्ये एकः १ इति प्रथम विकल्पे सप्त भङ्गाः ७, एषां पभिर्विकल्पैणने द्विचत्वारिंशद ४२ भङ्गा भवन्तीति । अथ सप्तक संयोगस्य एक विकल्पमाह- अहवा एगे रयणप्पभाए, 'एगे सक्करप्पभाए, जाब एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायां भवति, एकः शर्करामभायां, यावत्-एको वालुकाप्रभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एको प्रभा में, और दो नारक अधः सप्तमीपृथिवी में उत्पन्न हो जाते हैं ६, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक चालुकाप्रमा में एक नारक धूम प्रभामें एक नारक तमः प्रभा में और दो नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाते हैं ७ इसक्रम से रत्नप्रभापृथिवी की प्रधानता में ६ भंग और शर्कराप्रभापृथिवी की प्रधानता में एक भंग ऐसे ये सात भंग प्रथम विकल्प में होते हैं। इन ७ भंगों के साथ पूर्वोक्त ६ विकल्पों का गुणा करने से ४२ भंग हो जाते हैं । सात नैरयिकोंके प्रथम विकल्पमें षट सयोगी भगो का कोष्टक टीका में दिखाया हैं सो वहां देख लेवें। __अब सप्तकसंयोग के एक विकल्प को सूत्रकार प्रकट करते हैं(अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, जाव एगे अहे सत्तमाए होज्जो) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, एक नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, यावत्-एक नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, एक नारक धमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है और एक नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है सात સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૭) અથવા એક નારક શર્કરા પ્રભામાં, એક - નારક વાલુકાપ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં, એક નારક ધૂમપ્રભામાં, એક નારક તમ પ્રભામાં અને બે નારક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે આ ક્રમથી રત્નપ્રભાની પ્રધાનતાવાળા ૬ ભંગ અને શર્કરા પ્રભાની પ્રધાનતાવાળો એક ભંગ બને છે આ રીતે પહેલા વિક૯પના કુલ ૭ ભંગ બને છે. સાત લંગવાળા કુલ ૬ વિકપના મળીને કુલ ૭૪ ૬ = ૪૨ ષકસંગી ભંગ થાય છે. वे सूत्रधार स योगना मे विपने ४ ४२ छ-" अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, जाव 'एगे अहे सत्तमाए होज्जा" ५५१॥ ४ ना२४ રત્નપ્રભામાં, એકનારકં શર્કરા પ્રભામાં, એક નારક વલુકાપ્રભામાં, એક નારક પપ્રભામાં, એક નારક ધુમપ્રભામાં એક નારક તમપ્રભામાં અને એક નારક
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy