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________________ प्रचन्द्रिका टी० श०९ ४० ३२ ० ४ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् ક , यां, द्वौ शर्करामभायाम् एकः पङ्कप्रभायां भवति२, अथवा द्वौं रत्नप्रभार्या द्वौ शर्कराप्रभायाम्, एको धूममभायां भवति ३, अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम्, द्वौ शर्करामभायाम्, एकस्तमायां भवति ४, अथवा द्वौ रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायाम्, एकोऽधःसप्तम्यां भवति ५ इति पञ्चमविकल्पे पञ्चभङ्गाः ५ । अथ 'त्रयः, एकः, एक: एक:' इति पष्ठविकल्पमाह - ' अहवा तिन्नि रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा ' अथवा त्र्यो रत्नमभायास् एकः शर्करामभायाम्, एको वालुकाप्रभायां भवति १, 'एवं जाव अहवा तिन्नि रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ' एव पूर्वोक्तरीत्या यावत् अथवा त्रयो रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है) इस अन्तिम विकल्पतक जानना चाहिये इसके पहिले के तीन विकल्प इस प्रकार से हैं-" अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २, अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३, अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, दो नारक प्रभा में और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ४ " तीन एक एक " रूप जो छठ्ठा विकल्प है उसमें ५ विकल्प इस प्रकार से हैं - ( अहवा तिन्निरयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा) अथवा तीन नारक रत्नप्रभा में एक नारक शर्कराप्रभा में और एक नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाता है ? यह प्रथम भंग छठे विकल्प का है " एवं जाव अहवा तिनि स्यणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे अहे सत्ताए होज्जा) यावत् अथवा तीन नारक रत्नप्रभा में एक एगे अहे सत्तमाए होज्जा " (२) अथवा मे नारङ रत्नप्रलाभा, मे नार श રાપ્રભામાં અને એક નારક પંકપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૩) અથવા બે નારક रत्नप्रभाभा, બે નારક શર્કરાપ્રભામાં અને એક નારક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૪) અથવા એ નારક રત્નપ્રભામાં, એ નારક શર્કરાપ્રભામાં અને એક નારક તમ પ્રભામા ઉત્પન્ન થાય છે. (૫) અથવા બે નારક રત્નપ્રભામાં, ખે નારક શકરાપ્રભમા અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. હવે ૩-૧-૧ રૂપ છઠ્ઠા -अहवा तिन्नि, रयणप्पभाए, एगे અથવા ત્રણ નારક રત્નપ્રભામાં, વાલુકાપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. ८८ ܕܕ વિકલ્પના પાંચ ભંગ કહેવામાં આવે છે— करण्यभाए, हो वालय भाए होज्जा " (9) એક નારક શરાપ્રભામા અને એક નારક ' एवं जाव अहवा तिन्निरयणष्पभाए, एगे 1
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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