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________________ D ૨૨૨ भगवती ‘एवं नाव अहया एगे रयणप्पभाए, दो सकरप्पभाए. दो अहे सत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् अथवा एको रत्नप्रभायां ही शर्करामभायां द्वौ पद्धपभायां भवतः २, अश्या एको रत्नप्रभोयां, द्वौ शर्करामभायो दोधृमप्रभायां भवतः ३, अथवा एको रत्नप्रभायां, द्वौ शर्करामभायां दो तमायां भवतः ४, अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ शव राप्रभायां द्वौ अधः सप्तम्यां भवतः ५, इति द्वितीयविकल्पस्य पञ्चभङ्गाः ५, अर्थ 'द्वी, एकः द्वौ' इतितृतीयविकल्पमाह-'अहया दो रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए, दो बालुयप्पभाप होज्जा ' अथवा द्वौ रत्नमभायां भवतः, एकः शर्करामभायां, द्वौ वालुकामभायां भवतः १, ' एवं जाव अद्दया दो रयणप्पभाष, हो जाते हैं १, ( एवं जाव अहवा एगे रयगप्प भाप, दो मकरप्पभाए दो अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और दो लारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं २, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्करामभा में, और दो नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं ३, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और दो नारक तमः प्रभा में उत्पन हो जाते हैं ४, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक शर्कराप्रभा में और दो नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाते हैं, ५ इस तरह से ये ( एक दो दो) रूप द्वितीय विकल्प में भंग है। (दो एक दो ) रूप जो तृतीय विकल्प हैं उसमें पांच ५ भंग इस प्रकार से हैं-(अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, दो वाल्लयप्पभाए होजा) अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्करामभा में और दो नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं थाय छे. ( एवं जाव अवा एगे रयणप्पभाए दो सफरप्पभाष, दो अहे सत्तमाए होज्जा) (२) मथवा मे ना२४ २त्नप्रसाभ, मे ना२४ राप्रमामा भने બે નારક પંકપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૩) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, બે નારક શર્કરા પ્રભામાં અને બે નારક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે (૪) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, બે નારક શાપ્રભામાં અને બે નારક તમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૫) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, બે નારક શરામભામાં અને બે નારક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે હવે ૨-૧-૨ રૂપ ત્રીજા વિકલ્પના પાંચ ભંગ પ્રકટ કરવામાં આવે છે. ( अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरपभाए, दो वालुयप्पभाए होजा) (१) અથવા બે નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરા પ્રભામાં અને બે નારક पादुप्रभामा उत्पन्न याय छे. (एवं जाव अहवा-दो रयणप्रभाए, एगे सकर
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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