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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका ८०९ उ ३२ सू० ३ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् ५३ नैरयिको रत्नप्रभायाम्, एकः पङ्कप्रभायाम्, एकस्तमायाम्, एकोऽधः सप्तम्यां भवति१९। ‘अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए एगे असत्तमाए होज्जा ' अथवा एको रत्नप्रभायाम्, एको धूममभायाम्, एकस्तमायाम्, एकोऽधःसप्तम्यां भवति २० । ' अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा' अथवा एकः शर्करामभायाम्, एको बालुकाप्रभावाम्, एकः पङ्कप्रभायाम्, एको धूमप्रभायां भवति २१ । ' एव जहा रयणप्पभाए उवरिमाओ पुढवीओ चारियाओ तहा सक्करप्पभाए विउवरिमाओ चारेयव्वाओ' एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा रत्नप्रभयाः उपरिमा अन्तिमाः पृथिव्याः उत्तरो ( अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १९, ( अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा ) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है २०, ( अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा) अथवा एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २१, ( एवं जहा रयणप्पभाए, उवरिमाभो पुढवीओ चारियाओ तहा सकरप्पभाए वि उवरिमाओ चारियव्वाओ ) इस तरह जैसा रत्नप्रभा पृथिवी का योग आगे २ की पृथिवियों के साथ किया गया है उसी प्रकार से शर्करा तमाए, "अहवा एगे रयणनभाए, एगे पकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे खत्तमाए होज्ज | " (૧૯) અથવા એક રત્નપ્રભામાં, એક પકપ્રભામાં, એક તમઃપ્રભામા અને એક નીચે સાતમી નરકમા ાય છે. ૮ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे एगे अहे सत्तमाए होज्जा ” (२०) अथवा मे रत्नप्रलाभां, मे धूभપ્રભામાં, એક તમ.પ્રભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. अहवा एगे सकरप्पभाए, एगे वाउयप्पभाए एगे पंकप्पभाए, एगे घूमप्पभाए होज्जा " (२१) अथवा मे शशलामां, सेवासुप्रलाभां पहुપ્રભામાં અને એક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે 66 एवं जान रयणप्पभाए उत्र रिमाओ पुढवीओ चारियाओ, तहा सकरप्पभाए वि उवरिमाओ चारियव्वाओ " જે પ્રમાણે રત્નપ્રભાનેા પછીની પૃથ્વીએ સાથે ચાગ કરીને વિકલ્પો કહેવામાં "C
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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