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________________ प्रमेयचन्द्रिका 0 श०९ ७० ३१ सू० १ अश्रुत्वाधर्मादिलाभनिरूपणम् ६६३ सकाशाद् वा यावत् केवलिश्रावकमभृतेः सकाशाद् दा तत्पाक्षिकोपासिकायाः सकाशाद् वा संयमोपदेशमश्रुत्वाऽपि केवलेन विशुद्धेन संयमेन संयच्छेत् संयमकुर्यात , अथ च 'अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं नो संजमेज्जा' अस्त्येककः कश्चित् पुरुषः केवलिप्रभृतीनां सकाशात् संयमोपदेशमश्रुत्वा खलु केवलेन संयमेन नो संयच्छेत् , गौतमः प्राह-'से केणटेणं जाव नो संजमेज्जा ?' भदन्त ! तत् केनाथेन यावत्-अरत्येककः कश्चित् केवलिप्रभृतेः सकाशाद् संयमोपदेशमश्रुत्वाऽपि केवलेन संयमेन संपमं कुर्यात् , अस्त्येककः अपरः कश्चित्तु तथाविधमकृत्वा केवलेन संयमेन नो संघच्छेत् ? भगवानाह-'गोयमा ! जस्स णं जयणावरणिज्जाणं जीव ऐसा भी होता है जो केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से या तत्पाक्षिक उपासिका से संयम का उपदेश विना सुने भी केवल संयम की यतना कर सकता है और (अत्थेगहए केवलेणं संजमेणं नो संजमेजा) कोई एक जीव ऐसा होता है जो केवली आदि से उपदेश सुने विना शुद्ध संयम द्वारा संयम की यतना नहीं कर सकता है ? (से केणढणं जाव नो संजमेज्जा) इसमें गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि कोई जीव केवली से या यावत् उनके श्रावक आदि से संयम का उपदेश नहीं सुने विना भी केवल संयम के द्वारा संयम की यतता कर सकता है और कोई जीव संयम की यतना नहीं कर सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-( गोयमा) हे गौतम ! (जस्ल णं जयणावरणिज्जाणं कम्माणं खओव- , એવો પણ હોય છે કે જે કેવલી પાસે અથવા તેમના પક્ષની ઉપાસિકા પર્ય તની કોઈ વ્યક્તિ સમીપે સંયમને ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના પણ શુદ્ધ સંયમ द्वा२१ सयभनी यतन। ४२ छ, भने “ जत्थेगहए केवलेण संजमेणं नो सजमेज्जा" * 9 मेवे ५५y डाय छ रे श्री महिनी पासे सयમને ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના શુદ્ધ સંયમદ્વારા સયમની યતના કરી શકતો નથી गौतम २वामान ५-" से वेणटेण जाव नो सजमेज्जा ?"3 ભદન્ત ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે કોઈ જીવ કેવલી વગેરેની પાસે સ યમને ઉપદેશ સાભળ્યા વિના પણ શુદ્ધ સંયમ દ્વારા સાયમની યતના કરી શકે છે, અને કોઈ જીવ તેમનો ઉપદેશ સાંભળ્યા વિના શુદ્ધ સ યમદ્વારા સ યમની યતના કરી શકતો નથી ? महावीर प्रभुन। उत्तर-“ गोयमा !" उ गीतम! (जस्स णं जयणावरणिज्जाणं कम्माण खओषसमे कडे भवइ, से णं असोच्चाण केवलिस वा जाव
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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