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________________ shrafter टी० श० ८ उ. १ ज्ञानावरणीयादिकर्मणां सम्बन्धनिरूपणम् ५५१ समं ज्ञानावरणीयं कर्म, दर्शनावरणीयवदेव भजनारहितं नियमतो वक्तव्यमित्यभिप्रायेणाह - ' अंतराइएण सम जहा दरिसणावरणिज्जेण समं तदेव नियमा परोप्परं भाणियव्वाणि ' आन्तरायिकेण सम ज्ञानावरणीयं यथा दर्शनावरणीयेन समं भणितं भजनया रहितं प्रतिपादितं तथैव नियमात् नियमतो भजनया रहिते आन्तरायिक - ज्ञानावरणीये परस्परं भणितव्ये, तथा च-यस्य ज्ञानावरणीयं तस्य नियमतः आन्तरायिकं यस्य आन्तरायिकं तस्यापि नियमतो ज्ञानावरणीयं भवती , अथ गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि हे भदन्त ! जिस जीव में ज्ञानावरणीय कर्म का सद्भाव है उस जीव में क्या अन्तराय वर्म का भी सद्भाव होता है ? और जिस जीव में अन्तर राय कर्म का सद्भाव होता है उस जीव में क्या ज्ञानावरणीय कर्म का भी सद्भाव होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( अंतराहणं समं जहा दरिसणावर णिज्जेण समं तहेव नियमा परोप्परं भाणियव्वाणि) हे गौतम! जिस तरह से दर्शनावरणीय कर्म के साथ ज्ञानावरणीय कर्म कहा गया है अर्थात् भजना से रहित प्रतिपादित किया गया है उसी तरह से अन्तराय कर्म के साथ भी ज्ञानावरणीय कर्म भजना रहित प्रतिपादित किया गया है - इस तरह ये दोनों कर्म आपस में भजना से रहित कहे गये हैं- तथा च जिस जीवके ज्ञानावरणीय कर्मका सद्भाव है उस जीव के नियमतः अन्तराय कर्मका भी सद्भाव है और जिस जीव के अन्तराय कर्मका सद्भाव है, उस जीवके नियमसे ज्ञानावरणीय कर्मका सद्भाव है । इस तरह से ज्ञानावरणीय कर्मके अन्य सात कर्मों के सात विकल्प हैं? | ગૌતમ રવામીના પ્રશ્ન—હે ભદન્ત ! જે જીવમાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મોના સાવ હાય છે, તે જીવમાં શુ અંતરાય કના સદ્ભાવ હાય છે ? અને જે જીવમાં અંતરાય કર્માંના સદ્ભાવ હોય છે, તે જીવમાં શું જ્ઞાનાવરણીય કમા સદ્ભાવ હાય છે ? महावीर अलुना उत्तर- ( अंतराइए णं सम जहा दरिसणावर णिज्जेण समं तव नियमा परोप्पर' भाणियव्वाणि ) हे गौतम! नेवी रीते हर्शनावरणीय કની સાથે જ્ઞાનાવરણીય કા અવિનાભાવી સંબધ આગળ પ્રકટ કરવામાં આવ્યો એજ પ્રમાણે જ્ઞાનાવરણીય અને અન્તરાય કર્માના પણુ અવિનાભાવી સ’બધ સમજવે. એટલે કે જે જીવમાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મોના સદ્ભાવ હોય છે, તે જીવમાં અન્તરાય કર્મોના પણ નિયમથી જ સદ્ભાવ હોય છે, તથા જે જીવમાં અન્તરાય કના સદ્ભાવ હાય છે, તે જીવમાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મોના
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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