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________________ ५१६ भंगवतोसुत्र णं भंते ! जीवस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिज्जस्स कम्मस्त केवइएपहि, अविभागपलिच्छेएहिं आवेदिय परिवेटिए सिया? गोयमा ! सिय आवेढियपरिवेढिए, लिय नो आवेढियपरिवेढिए, जइ आवेढियपरिवेढिए नियमा अणंतहिं, एगमेगस्त णं संते ! नेरइयस्त एगमेगेजीवपरले जाणावरणिजस्ल कम्मरस केवइएहिं अविभागपलिच्छेएहिं आवेढियपरिवढिए ? गोयमा ! नियमा अगंतहिं, जहा नेरइयस्त एवं जाव वेमाणियस्त, नवरं मणूसस्स जहा जीवस्त। एनमेगस्ल णं भंते ! जीवस्त एगभेगे जीवपएसे दरिसणावरणिज्जस्त कम्मरस केवइएहि, एवं जहेव नाणावरणिज्जस तहेव दंडगो भाणियब्बो जाव वेमाणियस्ल, एवं जाव अंतराइयस्त भाणियवं, नवरं वेयणिज्जस्स, आउयस्स, णामस्त, गोयस्त, एएसिं चउण्हं वि कम्माणं मणुसरस जहा नेरइयस्त तहा भाणियवं लेसं तं चेव ॥ सू० ६॥ छाया-कति खलु भदन्त ! कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अष्ट कर्मपकृतयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-ज्ञानावरणीयं यावत्-आन्तरायिकम् । नैरयिकाणां कर्मप्रकृति वक्तव्यता(कइ णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ) इत्यादि। सूत्रार्थ-(कइ णं भंते ! कम्लपगडीओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! कर्मप्रकृतियां कितनी कही गई हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (अट्ट कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ) कर्मप्रकृतियां आठ कही गई हैं। (तं जहा) जो प्रकृति परतव्यता(कइ णं भते ! कम्मपगडीओ पण्णताओ) त्या: सूत्रार्थ-( कइ णं भवे ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ) 8 महन्त ! भ. प्रकृतियो टदी ४ी छ ? (गोयमा) गौतम ! (अद कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ) मा ४ प्रतिया 38 छ. (तंजहा) तमना नाम नाय प्रमाणे छे. (नाणा.
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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