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________________ प्रमैयन्द्रिका टीका श ८ उ ८ सू ३ कर्मबन्धस्वरूपनिरूपणम् ३१ नो तिर्यग्योनिको बध्नाति, नो तिर्यग्योनिकी बध्नाति, नो देवो बध्नाति, नो देवी वध्नाति । पूर्वप्रतिपनकान् प्रतीत्य मनुष्याश्च मानुष्यश्च वघ्नन्ति, प्रतिपद्यमानकान् प्रतीत्य मनुष्यो वा बध्नाति १, मानुपी वा बध्नाति २, मनुष्या वा बध्नन्ति ३, मानुष्यो वा बध्नन्ति४, अथवा मनुष्यश्व, मानुपी च वध्नाति५, अथवा मनुष्याश्च मानुष्यश्च बध्नन्ति ६, अथवा मनुष्याश्च मनुपी च वध्नन्ति ७, अथवा मनुष्यश्च बंधइ, णो तिरिक्श्नजोणिणी बंधह, णो देवो बंधइ, णो देवी बंधह, पुव्व पडियन्नए पछुच्च लणुस्ला य गणुल्सीओ य बंधति, पतिवज्जमाणए पड्डुच्च मणुस्लो वा बंधइ ?) मारक नहीं बांधता है, तिथंच योनि के जीव नहीं यांधते हैं, तिथंच स्त्री नहीं बांधती है, देव नहीं बांधता है देवी नहीं बांधती है, किन्तु पूर्वप्रतिपन्न को आश्रित करके मनुष्य और मनुज्यस्त्री यांधती है। प्रतिपचमान को आश्रित करके मनुष्य बांधता है ? (मणुसती वा बंधड) अथवा मनुष्य स्त्री बांधती है २ (मणुस्सा वा यंधति ३ मणुस्सीओ वा बंधंति ४) अथवा मनुष्य बांधते हैं ३ अथवा मनुष्यस्त्रियां बांधती हैं ४ (अहवा मणुस्तो य मणुस्ती य बंधइ ५) अथवा मनुष्यय और मनुष्य स्त्री बांधती है (अहवा मणुस्सो य मणुस्सीओ य धंति ६) अथवा मनुष्य और मनुष्यस्त्रियां बांधती हैं (अहवा -मणुस्सा य मणुस्सीय बंधति ७) अथवा सब मनुष्य बांधते हैं और मनुष्य स्त्री घांधती है७,(अहवा-मणुस्साय मणुस्लीओय बंधंति८) अथवा सय मनुष्य और सब मनुष्यस्त्रियां बांधती हैं। (तं ते ! किं इत्थी णो देवो वधइ, णो देवी बधइ, पुव्वपडिवन्नए पडुच्च मणुस्सा य मणुम्सीओ य बंधति, पडिवज्जमाणए पडुच्च मणुस्सा वा बधइ, मणुस्सी वा नधइ ) ना२४ બાંધો નથી, તિર્યચનિકે બાંધતા નથી, તિર્યંચ સ્ત્રી બાંધતી નથી. દેવ બાંધતા નથી, દેવી બાંધતી નથી, પરંતુ પૂર્વ પ્રત્તિપન્નની અપેક્ષાએ મનુષ્ય અને મનુષ્ય સ્ત્રી બાંધે છે. પ્રતિપદ્યમાનની અપેક્ષાએ મનુષ્ય બાંધે છે, (૧) મનુષ્ય સ્ત્રી બાંધે छे (२) (मणुस्सा वा बधति, मणुस्सीओ वा बंधति ) (3) अथवा मनुष्य। मधि छ, (४) अथवा मनुष्य सीमा म छ, ( अहवा मणुस्सो य मणुस्सी य बधइ ) (५) Aथा मनुष्य भने मनुष्य भी मांध छ, ( अहवा मणुस्सो य मणुस्सीओ य ब धइ) (6) Aथा मनुष्य भने मनुष्य श्री मा छ, ( अहवा मणुस्सा य मणुस्सीय बधति ) (७) अथ। सपा मनुष्य भने मनुष्य श्री राधे छ, ( अहवा मणुरमा य मणुस्पीओ य बधति) (८) अथवा સઘળા મનુષ્ય અને સઘળી મનુષ્ય સ્ત્રીઓ બાંધે છે
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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