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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०८ उ० ९ सू० ९ कार्मणशरीरप्रयोगवन्धवर्णनम् ४०३ रूपमदेन-सौन्दहिङ्कारेण, तपोमदेन-'अहमुग्रतपस्वी' इत्येवं तपस्यादर्पण,श्रुतमदेन विद्याज्ञानाभिमानेन, लाभमर्दैन- अहमेव लाभवान् ' इत्यभिमानेन, ऐश्वर्यमदेनसम्पत्तिदर्पण नीचगोत्रकामणशरीर-यावत्-प्रयोगनामकर्मण उदयेन नीचगोत्रकामणशरीरप्रयोगवन्धो भवति, गौतमः पृच्छति-' अंतराइयकम्मासरीरपुच्छा' हे भदन्त !आन्तरायिककामणशरीरपृच्छा,तथा च आन्तरायिककार्मणशरीरप्रयोगबन्धः कस्य कर्मण उदयेन भवति ? भगवानाह-गोयमा ! दाणंतराएणं, लामंतराएणं भोगंतराएणं, उवभोगंतराएणं, वीरियंतराएणं, अंतराइयकम्मासरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएणं, अंतराइयकम्मासरीरप्पओगबंधे' हे गौतम ! दानान्तरायेण-दानसुन्दर हूं इस प्रकार के सौन्दर्य के अभिमान से मैं बहुत उग्रतपस्वी हैं इस प्रकार के तपस्या के अहंकार से, में बहुत अधिक श्रुत के मद से, लाभ के मद से, मेरे पास बहुत बड़ी धनधान्यादिरूप संपत्ति है इस प्रकार के ऐश्वर्य के घमंड से और नीचगोत्रकार्मणप्रयोगनामक कर्म के उदय से जीव को नीचगोत्रकामणशरीरप्रयोग का वध होता है। _अब गौतमस्वमी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(अंतराइयकम्मासरीरपुछा) हे भदन्त ! अन्तरायिककार्मणशरीरप्रयोग का वध किस कर्म के उदय से होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम! (दाणंतराएणं, लाभंतरापर्ण, भोगंतराएणं, उवभोगंतराएणं, वीरियंतराएणं अंतराइय कम्मासरीरप्पओगनामाए कम्मरस उदएणं अंतराइय कम्मासरीरप्पओगवंधे ) दानान्तराय से-दान में विध्नडालने से, लाभा प्रभारी सौयन मलिमान ४२पाथी, “हु धor A तपस्या ४२ना२ छु," આ પ્રમાણે તપનું અભિમાન કરવાથી, “હુશ્રુત સિદ્ધાંતને ઘણો જ જાણકાર છું,” આ પ્રમાણે કૃતનું અભિમાન કરવાથી, લાભનું અભિમાન કરવાથી, “મારી પાસે ઘણું જ ધન-ધાન્યાદિ રૂપ સંપત્તિ છે,” આ પ્રમાણે ઐશ્વર્યાને ઘમંડ કરવાથી અને નીચગોત્ર કાર્મણ શરીર પ્રગ નામક કર્મના ઉદયથી જીવ નીચત્ર કામણ શરીર પ્રયોગને બંધ કરે છે. गीतम. स्वाभाना प्रश्न-(अंतराइकस्मासरीरपुच्छा) है महन्त ! આરાયિક કામણ શરીર પ્રયોગબંધ ક્યા કર્મના ઉદયથી થાય છે ? मडावी२ प्रभुन। उत्तर-“ गोयमा ! " गौतम! (दाणतराएण', लाभतराएण', भोगतराएण', उवभोगतराएण, वीरियतराएण अंतराइय कम्मा सरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएण' अंतराइयकम्मासरीरप्पओगव'धे ) हाना. ત્તરાયથી (દાનમાં વિન નાખવાથી ), લાભારાયથી (કેઈને ધનાદિકની
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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