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________________ ૨૦૨ भगवतीले राभावेन, रूपामदेन-सौन्दर्याहङ्काराभावेन, तपोऽमदेन-तपोऽहङ्काराभावेन, श्रुतामदेन-श्रुतज्ञानाहङ्काराभावेन, लाभामदेन, ऐश्वर्यामदेन-समृद्धयहङ्काराभावेन उच्चगोत्रकामणशरीर-यावत्-प्रयोगनामकर्मण उदयेन उच्चगोत्रकाम णशरीर. प्रयोगवन्धो भवति । गौतमः पृच्छति-'नीयागोयकम्मासरीरपुच्छा ' हे भदन्त ! नीचगोत्रकामणशरीरपृच्छा, तथा च नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगवन्धः खलु कस्य कर्मण उदयेन भवति? भगवानाह-' गोयमा ! जाइमएणं, कुलमएणं, वलमएणं जाव इस्स रियमएणं णीयागोय कम्मासरीर-जाव-पओगव धे' हे गौतम ! जातिमदेन-अई सर्वोत्तम जातीय इत्येवं जात्यहंकारेण,कुलमदेन-सम सर्वोत्तमं कुलमित्येवं कुलाभिमानेन, बलमदेन 'अहं सर्वापेक्षया विशिष्टशक्तिशाली' इत्येवं शक्त्यकारेण यावत्मान नहीं कहने से. शक्तिका मद नहीं करने से, सौन्दर्य का अभिमान नहीं करने से, तपस्या का अभिमान नहीं करने से, श्रुतज्ञान का अहं. कार नहीं करने से ऐश्वर्य-समृद्धि का घमंड नहीं करने से, और उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामक कर्म के उदय से जीवको उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोग का बंध होता है। अव गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(नीयागोयकम्मासरीरपुच्छा) हे भदन्त ! नीच गोत्र कार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उद्य से होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(जाइमएणं, कुलमएणं, बलमएणं जाव इस्सरियमएणं णीयागोयकम्मासरीरजावपओगवंधे) मैं मर्वोत्तम जाति का हूं, इस प्रकार के जाति के अहंकार से, मेरा सर्वोत्तम कुल है इस प्रकार के कुल के अभिमान से मैं सब से अधिक बलशाली हूं इस प्रकार के शक्ति के अहंकार से, मैं सब से अधिक નહીં કરવાથી, સૌંદર્યનું અભિમાન નહીં કરવાથી, તપસ્યાને ગર્વ નહીં કરવાથી, શ્રુતજ્ઞાનને ગર્વ નહી કરવાથી, ઐશ્વર્ય (સમૃદ્ધિ) ને ગર્વ નહીં કરવાથી અને ઉચ્ચત્ર કાર્મણ શરીર પ્રયોગ નામક કર્મના ઉદયથી જીવ ઉચ્ચત્ર કામણ શરીર પ્રગબંધ કરે છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-(नीयागोयकम्मासरीरपुच्छा ) 8 महन्त ! નીચગાત્ર કામણ શરીર પ્રયોગ બંધ ક્યા કર્મના ઉદયથી થાય છે? महावीर प्रभुन। उत्त२-(जातिमएण, कुलमएण', पलमएण नाव ईस्सि. रियमएण णीयागोय कम्मासरीर जाव पओगबधे ) " ई सवात्तम तिना धु." मा प्रारे नतिर्नु मलिभान ४२पाथी, “भाष सवोत्तम छ,” આ પ્રમાણે કુળનું અભિમાન કરવાથી, “સૌથી વધારે બળવાન છું, ” આ પ્રમાણે શક્તિને અહંકાર કરવાથી, “હુ સૌથી વધારે સુંદર છું,” આ
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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