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________________ भगवती ३८५ LO न्वरायेण, उपभोगान्तरायेण वीर्यान्तरायेण, अन्तरायकार्मणशरीर प्रयोगनाम्नः कर्मण उदयेन अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगवन्थः । ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरमयोगबन्धः खलु भदन्त ! किं देशबन्धः सर्ववन्धः ? गौतम ! देशबन्धः नो सर्ववन्धः, एवं यावत् अन्तरायकार्म गशरीरमयोगबन्धः । ज्ञानावरणीय कार्मणशरीरमयोगवन्धः खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिर भवति, गौतम ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरमयोगगौतम 1 (दाणवराएणं, लाभंनराएणं, भोगनराणं, उभोगंतराएणं, चीरियंतराएणं, अंतराइयकस्त मरीरपओगनासाए कम्मस्स उदपणं अंतराइयकर मासरीरप्पओगव धे) दान में अन्तराय करने से, लाभ में अन्तराय करने से, भोग में अन्तराय करने से, उपभोग में अन्तराय करने से वीर्य में अन्नराय करने से तथा अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोग नाम कर्म के उदय होने से अन्तरामकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध होता है । (णाणावर णिज्जम्मासरीरपराधे णं भंते ! किं देखयचे, सव्व वधे ? हे भदन्त ! ज्ञानवरणीय कार्मणशरीरप्रयोगबंध क्या देशबन्धरूप हैं या सर्वधरूप है ? (गोमा ) हे गौतम! ( देवधे णो सव्वधे ) ज्ञानवरणीय कार्मणशरीरप्रयोगबंध देशय धरूप है, सर्वबन्धरूप नहीं है । ( एवं जाव अंतगइयम्मासरीरप्पओ वि) इसी तरह से दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगवध से लेकर अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोग में भी समझना चाहिये - अर्थात् ये सब देशबन्धरूप हैं सर्वधरूप नहीं हैं ( णागावर निज्जकम्मासरीरप्पओगबंधे णं भंते! का गोतम ! (दाणतराएण, लाभ' तराएण, भोगं तराएण उपभोग तराण', वीरियंत गएण तराइ कम्मा सरीरप्पओग नासाए कम्मम्स उदरण अतराइयकम्मासरीरप्प ओगावे) દાનમાં અતરાય કરવાથી, લાભમાં અંતરાય કરવાથી, ભાગમાં અંતરાય કરવાથી, ઉપસેગમાં અંતરાય કરવાથી વીર્યમાં અંતરાય કરવાથી અને અન્તરાય કાળુશરીરપ્રત્યેાગનામ કર્માંના ઉદયથી અંતરાયકા ણશરીરપ્રયાગ'ધ થાય છે, ( णाणावर णिज्जकम्मासरीरपओगव घे णं भंते! किं देव धे, सव्ववघे १ ) હૈ ભદન્ત ! જ્ઞાનાવરણીય શીરપ્રયાગમ ધ શું દેશમ ધરૂપ હાય છે, કે સ. अध३य हाय छे ? (गोयमा । देसत्र घे णो सव्वयं घे) हे गौतम ! ज्ञानावरणीय अर्भ शुशरीरप्रयोगम'ध हे वय छे, सर्वमधश्य नथी. (एव जावअतराइय कम्मासरीरत्नओगवधे वि) मे प्रभा दर्शनावरीय अभ्युशरीर प्रयोग धथी सहने અન્તરાય કાણુશરીરપ્રચાગળ ધપન્તના બધા પણુ દેશમ ધરૂપ છે, સબધ३५ नथी (नाणावरणिजकम्मासरीरख्पभोग घेण भसे ! कालओ केवचिरं होइ ? )
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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