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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ८ ४० ९ सू०९ कार्मणशरीरप्रयोगधन्धवर्णनम् ३८३ रूपामदेन, तपोऽमदेन, श्रुताऽपदेन, लाभाऽमदेन, ऐश्वर्याऽमदेन, उच्चगोत्रकार्मणशरीरयावत् प्रयोगवन्धः, नीचगोत्रकाम णशरीरपृच्छा, गौतम ! जातिमदेन, कुलमदेन, बलमदेन यावत् ऐश्वर्यमदेन नीचगोत्रकामणशरीरयारत्मयोगबन्धः, आन्तरायिककार्मणशरीरपृच्छा, गौतम ! दानान्तरायेण, लाभान्तरायण, भोगा(जातिअमएणं, कुलअमएणं, बलअमएणं, स्वभमएणं, तवअमएण, सुयअमएणं, लाभअमएणं, इरसरिय, अमदेणं उच्चागोयकम्मासरीर जावपभोगधे ) हे गौतम ! जाति का मद नहीं करने ले, कुलका मद नहीं करने से, बल का मद नहीं करने से, रूपका मद नहीं करनेसे, तप का मद नहीं करने से, श्रत का मद नहीं करने से, लाभ का पद नहीं करने से ऐश्वर्य का मद नहीं करने और उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनाम कर्म के उदय से उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है। (नीयागोयकम्मासरीरपुच्छा ) हे भदन्त ! नीचगोत्र कार्मणशरीरप्रयोग बन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? ( गोयमा) हे गौतम ! (जाति. मएणं,, कुलमएणं, बलमएणं, जाव इस्सरियमएणं, णीयागोयकम्मासरीर जाव पओगबंधे ) जाति का मद करने से, कुल का मद करने से, बल का मद करने से, यावत् ऐश्वर्य का मद करने से और नीचगोत्र कार्मणशरीरप्रयोग नाम कर्म के उदय से नीचगोत्रकामणशरीरप्रयोग बन्ध होता है । (अंतराइयकरमासरीरपुच्छा ) हे भदन्त ! अन्तरायकामणशरीरप्रयोगवन्ध किस कर्स के उद्य से होता है ? ) ( गोयमा ! ) हे (जातिअमएण, कुल अमएण, बलअमएण, स्वअमएण , तवअमएण, सुयअमएण, लाभअमएण, इस्सरियअमएण, उच्चागोमकम्मासरीरप्पओगधे ) ગૌતમ! જાતિને મદ નહીં કરવાથી, કુળને મદ નહીં કરવાથી, બળને મદ નહીં કરવાથી, રૂપને મદ નહીં કરવાથી, તપનો મદ નહીં કરવાથી, શ્રતને મદ નહીં કરવાથી, એશ્વર્યને મદ નહીં કરવાથી, અને ઉચગોત્ર કાર્પણ શરીર પ્રયોગ નામ કર્મના ઉદયથી ઉચ્ચગોત્ર કામ શરીર પ્રગબંધ થાય છે (नीयागोयकम्मासरीरपुच्छा ) 3 महन्त ! नीयमात्र भए शश२ प्रयोग ५ ४या भनौ यथी थाय छ ? (गोयमा ! ) 3 गीतम ! (जातिमएण, कुलमएण', बलमएण', जाव इस्सरियमएण' णीयागोयकम्मासरीर जाव प्पओगषधे ) જાતિ, કુળ, બળ, રૂપ, તપ, લાભ અને ઐશ્વર્યને મદ કરવાથી અને નીચગોત્ર કામણ શરીર પ્રયોગનામ કર્મના ઉદયથી નીચગોત્ર કામણ શરીર प्रया1 मध थाय छे. ( अंतराइयकम्मोसरीरपुच्छा ) 3 महन्त ! अन्तराय भी शरी२ प्रयोग म. या भनौ यथी थाय छे ? (गोयमा ! ) है
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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