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________________ भगवती सू अथाहारकशरीरप्रयोगस्यवान्तरं प्ररूपयितुमाह - ' आहारगसरीरप्पओगवधंतरं णं भंते ! कालओ केवच्चिर होइ ? ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! आहारगशरीरप्रयोगवन्धान्तरं खलु कालतः कालापेक्षया कियच्चिर भवति ? भगवानाद'गोयमा! सव्वबंधंतर जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण अणंतं कालं अणंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ कालओ, खेतओ अनंता लोगा, अब पोग्गलपरियह देणं, एवं देसवधंतर ं वि ' हे गौतम! आहारकशरीरप्रयोगस्य सर्वबन्धान्तर जघन्येनं अन्तर्मुहूर्त भवति, उत्कृष्टेन तु सर्ववन्धान्तरम् अनन्तं कालम्, अनन्ता उत्सर्पिण्यवसर्पिण्यः कालतः कालापेक्षया, क्षेत्रतः क्षेत्रापेक्षया तु अनन्ता लोकाः, अपार्द्धम् ३५८ इसके बाद वह औदारिक शरीर का ग्रहण अवश्य कर लेता है । आहारक शरीर का अन्तर्मुहूर्त में प्रथम समय में सर्वबंध होता है और उत्त रसमयों में देशबंध होता है । अब सूत्रकार आहारकशरीरप्रयोगबंध का अन्तर प्रकट करते हैंइसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है - ( आहारण सरीरप ओगवंधंतरं णं भंते! कालओ केवचिरं होइ ) हे भदन्त ! आहारगशरीरप्रयोगबंध का अन्तरकाल की अपेक्षा से कबतक का होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं (गोयसा) हे गौतम! ( सव्वबंधंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणतं कालं अनंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंतालोगा अवडुंपोग्गल परियहं देणं एवं देवंधंतरं वि) आहारकशरीर के सर्वबंध का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त का होता है और उत्कृष्ट से अनंतकाल का होता है - इस अनन्तकाल में अनन्त उत्स - છે. આહારક શરીરના અન્તર્મુહૂતના પ્રથમ સમયમાં સખંધ થાય છે અને ઉત્તર સમયેામાં દેશબંધ થાય છે. હવે સૂત્રકાર આહારક શરીર પ્રયાગમ’ધતું અ'તર પ્રકટ કરે છે આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન કરે છે કે “ आहारगसरीरप्पओगबध तर ण भंते । कालओ केवच्चिर होइ ? ” हे ભદન્ત ! આહારક શરીર પ્રયાગમ’ધનું અતરકાળની અપેક્ષાએ કેટલુ હાય છે ? महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! हे गौतम! ( सव्त्रबध'तर जहणेणं अतोमुहुत्त, उक्कोसेण अणतंकाल अनंताओ उस्सप्पिणी, ओसप्पिणीओ फालओ, खेत्तओ अण ता लोगा अवडूढ पोगालपरियट्ट देणं - एवं देख 'घ' तर वि ) આહારક શરીરના સબંધનું અતર ઓછામાં ઓછું અંતર્મુહૂતનું હાય અને વધારેમાં વધારે અનંતકાળનુ હોય છે—તે અનંતકાળમા અન ંત ઉત્સર્પિણી
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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