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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०८ उ० ९ भू०७ माहारशरीरप्रयोगवन्धवर्णनम् ३५७ खल कालतः कालापेक्षया कियच्चिरं भवति ? भगवानाह- गोयमा ! सपबंधे एक्कं समय, देसबंधे जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त' हे गौतम आहारकशरीरमयोगस्य सर्ववन्धः एक समयं भवति प्रथमममये एव सर्ववन्ध सद्भावात् देशवन्धस्तु जघन्येनान्तर्मुहूतं भवति, उत्कृष्टेनापि चान्तर्मुहूर्त भवति, तथाहिजघन्येन उत्कर्षेण चान्तर्मुहुर्तमेवाहारकशरीरी भवति, परतः औदारिकशरीरस्यावश्यंग्रहणात् , तत्र चान्तमुहर्ते प्रथमसमये सर्वबन्धः, उत्तरसमयेपु च देशवन्धः ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(आहारगसरीरप्पओगवंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ) हे भदन्न । आहारक शरीरमयोगवंध काल की अपेक्षा कवनक रहता है ? इसके उत्तर में प्रसु कहते हैं-(गोयमा! सव्वधे एक्कं समयं, देलबंधे जहाणेणं अंतोमुहत्त, उनकोसे वि अंतोमुहतं) हे गौतम ! आहारक शरीरप्रयोग का सबंध एक समय का होता है और देशबंध जघन्य से एक अन्तर्मुहर्त का होता है और उत्कृष्ट से भी एक अन्तर्मुहूर्त का होता है। क्यों कि प्रथम समय में ही आहारक शरीरप्रयोग के सर्वषध का सद्भाव रहता है। अतः इसके सर्वबंध का समय एक समय का कहा गया है। देशबंध जघन्य से अन्तर्मुहर्त का है और उत्कृष्ट से भी वह अन्तर्मुहर्त का है तात्पर्य यह है कि ऋद्धिधारी छठा गुणस्थान पर्ती संयतजन आहारक शरीर से युक्त जघन्य और उत्कृष्ट में एक अन्तर्मुहर्त तक ही रहता है। गौतम स्वामीना प्रश्न-( आहारगसरीरप्पओगबंधे णं भते ! कालओ केवचिरं होइ ? ) महन्त ! मा.२४ शरी२ प्रयोग१५ जना अपेक्षा मे કયાં સુધી રહે છે ? महावीर प्रभुना उत्तर--" गोयमा !" उ गौतम ! (सव्ववधे एक्क समयं, देसबंधे जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेण वि अतोमुहुत्तं ) माहा२४ शरीर પ્રયોગને સર્વબંધ એક સમય હોય છે, તેને દેશબ ધ ઓછામાં ઓછા એક અન્તર્મુહૂર્તને અને વધારેમાં વધારે પણ એક અન્તર્મુહૂર્તને હોય છે. કારણ કે પ્રથમ સમયમાં જ આહારક શરીર પ્રગના સર્વબંધને સદ્દભાવ રહે છે, તેથી તેના સર્વબંધને કાળ એક સમયને કહ્યું છે. દેશબંધને જઘન્ય તથા ઉત્કૃષ્ટકાળ એક અન્તર્મુહૂર્તને જે કહેવામાં આવ્યું છે, તેનું સ્પષ્ટીકરણ આ પ્રમાણે છે–ઋદ્ધિસંપન્ન છઠ્ઠા ગુણસ્થાનવર્તી સંયત મનુષ્ય જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ કાળની અપેક્ષાએ એક અત્તમુહૂર્ત સુધી જ આહારક શરીરથી યુક્ત રહે છે, ત્યારબાદ તે ઔદારિક શરીરને અવશ્ય ગ્રહણ કરી લે
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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