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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी0 श० ८ २०९ ० ५ वैकयिकशरीरप्रयोगबन्धवर्णनम् ३०३ णिया, एवं वेव अणुत्तरोदवाइय कप्पाईया वेमाणिया एवं चेय' एवं पूर्वोक्तरीत्या सौधर्मकल्पोपपन्नकानां वैमानिकानाम् , एवं यावत्-ईशान-सनत्कुमारमाहेन्द्र-ब्रह्मलान्तक-शुक्र - सहस्रारा-नतप्राणता - ऽरणाऽ-च्युत - नवग्रैवेयककल्पापीतानां वैमानिकानाम् , एवञ्चैत्र पूर्वोक्तरीत्यैव अनुत्तरौपपातिककल्पातीतनां वैमानिकानाम् एवं चैव पूर्वोक्तरीत्यैव वैक्रियशरीरमयोगवन्धो वीर्यसयोगसद्व्यतया प्रमादप्रत्ययात् कर्म च, योगं च, आयुष्यं च प्रतीत्य तथाविध सौधः मादिदेवपञ्चेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मण उदयेन भवतीत्यवधेयम् , गौतमः पृच्छति-' वेउन्चियसरीरप्पओगव धे गं भंते ! किं देसवंधे, समत्र थे ? ' हे भदन्त । वैक्रियशरीरप्रयोगवन्धः खलु किं देशवन्धो भवति ? किं वा सर्वबन्धो भवति? गया वेमाणिया, एवं जाव अच्चुयगेवेज्जकप्पाईया वेमाणिया, एवं चेव अणुत्तरोववाहयकप्पाईया, वेमाणिया एवं चेव) इसी तरह से सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिकदेवों का, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, शुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, इन कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों का, नववेयक कल्पातीत वैमानिक देवों का, अनुत्तरोपपातिककल्पातीत वैमानिक देवों का, वैक्रियशरीरप्रयोगबंध सवीर्यता, सयोगता, सद्व्य ता से, प्रमादरूप कारण से, कर्न, योग, भव और आयुष्य इन की अपेक्षा से, और तथाविध सौधर्मादि देव पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं-(वेउवियसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कि देसबंधे, सव्वबंधे) हे भदन्त । वैक्रियशरीरप्रयोगबंध क्या चेव अणुत्तरोववाइयक्रप्पाईया वेमाणिया एवं चेव ) से प्रभारी सौधम ४६या५पन नमानि वानी, शान, सनमा२, भाडेन्द्र, प्रह्म, eirds, शु, સહસાર, આનત, પ્રાણત, આરણ અને અચુત, એ કલ્પપપન્નક વૈમાનિકને નવરૈવેયક કલ્પાતીત વૈમાનિક દેને, અને અનુત્તરૌપપાતિક કલ્પાતીત વૈમાનિક દેવેન વૈકિયશરીર પ્રગ બંધ પણ સવીતા, સગતા, સદ્રવ્યતા પ્રમાદરૂપ કારણ, કર્મ, યોગ, ભવ અને આયુષ્ય રૂપ કારણોની અપેક્ષાએ અને તથા વિધ-તે તે પ્રકારના-સૌધર્માદિ દેવપંચેન્દ્રિય વૈકિયશરીર પ્રયોગ નામ કર્મના ઉદયથી થાય છે. डवे गीतमस्वामी महावीर प्रभुने सो प्रश्न पूछे छे 3-( वेउव्यिय सरीरप्पओगधे णं भंते ! कि सबधे, सबब धे?) महन्त । वठियश.
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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