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________________ - भगवतीचे २९० एवं यावत् अनुतरौपपातिकाः, वैक्रियशरीरप्रयोगवन्धः खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! सर्ववन्धो जघन्येन एकं समयम् , उत्कृष्टेन द्वौ समयौ, देशवन्धो जघन्येन एक समयम् , उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमानि समयोनानि, वायुकायिकैकेन्द्रिय दैयिक० पृच्छा ? गौतम ! सर्वबन्धः एक समयं, देशवन्धो जघन्येन एकं समयम् , उत्कृप्टेन अन्तर्मुहूर्तम् । रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकपृच्छा ? जाव अणुत्तरोवबाइया) इसी तरह से गयुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रिय शरीरप्रयोगध तथा रत्नप्रभापृथिवीनैरयिक वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध श्री जानना चाहिये। इसी तरह का कथन यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों तक जालना चाहिये। (वेउग्वियसरीरप्पओगधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं हाह ) हे भदन्त ! वैक्रियशरीर प्रयोगबंध काल की अपेक्षा कबतक होता है । (गोयमा) हे गौतम । (सव्वबंधे जहण्णणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो समया, देसबंधे जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवलाई समयऊणाई) सर्वबंध-वैक्रियशरीरप्रयोग का सर्वबंध जघन्य से एक लषय तक और उत्कृष्ट से दो समयतक होता है। देशबंध जघन्य से एक समयतक और उत्कृष्ट से तेतीलसागर तक होता है। (वाउकाइय एगिदियवेउब्विय पुच्छा) हे भदन्त ! वायुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगबंध काल की अपेक्षा करतक होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोएवं जाव अणुत्तरोववाइया) मे० प्रभारी वायुयि मेन्द्रिय वैश्यि शरीरप्रयाग બંધ તથા રત્નપ્રભાપૃથ્વી નરયિક વિકિય શરીર પ્રગબંધ દેશબંધ રૂપ પણ હોય છે અને સર્વબંધ રૂપ પણ હોય છે અનુત્તરીયપાતિક દે પર્યનતના સમસ્ત જીના વૈકિય શરીર પ્રગબંધ વિશે પણ એજ પ્રમાણે સમજવું. ( वेउव्वियसरीरप्पओगबधे ण भंते ! कालओ केवच्चिर होइ) महन्त ! वैठिय शरी२ प्रयोग ध नी अपेक्षा ४यां सुधी २७ छ ? ( गोयमा!) गौतम ! ( सव्वधे जहणे ण एक समय उक्कोसेण दोसमया, देसवधे जहण्णेण एक समयं, उक्कोसेण तेत्तीसं सांगरोवमाई समयकणाई) वैठिय शरीर પ્રયોગને સર્વબંધ ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે બે સમય સુધી હોય છે. દેશબંધ ઓછામાં ઓછો એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે ૩૩ સાગરોપમ પ્રમાણ કાળ કરતાં એક ન્યૂન સમય सुधाना जाय छ (वाउकाइय एगिदिय वेउब्धिय पुच्छा) 3 महन्त ! वायुयि એકેન્દ્રિય ક્રિયશરીર પ્રયોગ બંધ કાળની અપેક્ષાએ કયાં સુધી રહે છે? (गोयमा !) है गौतम! (सव्वधे एकं समय, देसवधे जहण्णेण
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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