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________________ प्रमेद्रिका टीका ० ८४०९ सू० ५ वैक्रयिकशरीर प्रयोगवन्धवर्णनम् २८९ प्रयोगवन्धः खलु भदन्त ! कि देवबन्धा, सर्वबन्धः ? गौतम ! देशयन्धोsपि, सर्वबन्धोऽपि, वायुकायिकैकेन्द्रियः एवं चैव, रत्नप्रभा पृथिवीनैरयिकाः एवं चैव । एवं चेव) सवीता, रायोगता, और सद्द्रव्य से पूर्व की तरह जैसा वायुकायिकों में कहा गया है उसी तरह से यहां पर भी जानना चाहिये इसी तरह से मनुष्यपंचेन्द्रिय वैक्रियवशरीरप्रयोगव ध भी जानना चाहिये । असुरकुमार भवनवासी देवपंचेन्द्रिय वैकियशरीरप्रयोगबंध भी रत्नप्रभा पृथिवी के नैयिक जीवोंकी तरहसे जानना चाहिये | इसी तरह से यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिये । इसी तरहसे वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, सौधर्म कल्पोपपन्नक वैमानिक यावत् अच्युत तक जानना चाहिये। ग्रैवेयक कल्पातील वैमानिकों को भी इसी तरह से जानना चाहिये । तथा अनुत्तरोपपातिक कल्पासीत वैमानिक देवोंको भी इसी तरह से जानना चाहिये । (वेव्विसरीरप्पओगबंधे णं भते ! किं देव धे सव्वधे) हे भदन्त ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध क्या देशवं धरूप होता है या सर्वब धरूप होता है ? (गोमा) हे गौतम । (देलबधे वि सव्वधे वि वैक्रियशरीरप्रयोगबंध देश धरूप भी होता है और सर्वबंध रूप भी होता है । (वाक्काय एगिंदिन एवं चेव, रयणप्पभापुढविनेरया एवं चेव, एवं કાના વિષયમાં જેવું કથન આગળ કરવામાં આવ્યું છે, એવુ જ કથન તિય". ચર્ચાનિક પચેન્દ્રિય વૈક્રિય શરીર પ્રયાગળ ધના વિષયમાં પણુ સમજવુ`. એજ પ્રમાણે મનુષ્ય પચેન્દ્રિય વૈક્રિય શરીર પ્રચાગમધ વિષે પણ જાણુવું. અસુરકુમાર-ભવનવાસી દેવપ’ચેન્દ્રિય વૈક્રિયશરીરપ્રયાગમ ધનું કથન રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નારકેાના વૈકિય શરીર પ્રયાગમધના કથન પ્રમાણે સમજવુ એજ પ્રમાણે સ્તનિતકુમાશ પન્તના ભવનપતિ દેવા વિષે સમજવું. એજ પ્રમાણે વાનબ્યન્તર, ચૈાતિષિક, ચૌધ કલ્પે પપન્નક વૈમાનિકથી લઈને અશ્રુત પર્યન્તના કલ્પાપપન્નક વૈમાનિક દેવા વિષે સમજવુ, વેયક કલ્પાતીત વૈમાનિકાનું કથન પણ એજ પ્રમાણે સમજવું. તથા અનુત્તરૌપપાતિક કલ્પાતીત વૈમાનિકાનુ પણ એવુ જ उथन सभवु. ( वेउव्वियसरीररूपओगमघे णं भते ! कि देसब'धे वि सव्वबधे ति ? ) डे लहन्त ! वैडिय शरीर प्रयोगमध शु देशगंध३५ होय छे, } सर्वभध३५ होय छे ? ( गोयमा ! ) हे गीतभ ! ( देखव घे वि सव्वव घे वि) वैयि शरीर प्रयोगमध, देशमध३य पशु होय छे भने सर्वध ३५ पशु डाय छे (वाउक्काइय एगिदिय एवं चेव, रयणप्पभा पुढवि नेरइया एवं चेव, R ३७
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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