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________________ ૨૮૨ भगवतीस्त्र रस्स सव्वबंधगा, अवधगा विसेसाहिया, देसवंधगा असंखेज्ज गुणा' हे गौतम! सर्व स्तोकाः जीवाः औदारिकशरीरस्य सर्ववन्धकाः भवन्ति, तेपामुत्पत्तिसमये एव भावात् , अवन्धका विशेषाधिकाः विग्रहगत्या सिद्धत्वादी च तेषां सद्भावेन सर्वबन्धका पेक्षया विशेषाधिकत्वात् , देशवन्धकास्तु असंख्यातगुणाः भवन्ति, देशबन्धकालस्यासंख्यातगुणत्वात् ॥ मू०४ ।। वक्रियशरीरप्रयोगवन्धवक्तव्यता । औदारिकशरीरप्रयोगबन्धं प्ररूप्य वैक्रियशरीरमयोगवन्धं मरूपयति- वेउविय' इत्यादि। मूलम्-वेउव्विय सरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियवेउव्वियसरीरप्पओगबंधे य, पंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पओगबंधे य । जइ एगिदियवेउव्वियसरीरप्पओगबंधे किं वाउक्काइयएगिदिय सरीरप्पओगबंधे य अबाउक्काइयएगिदियसरीरप्पओगबंधे य ? एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहण-संठाणे वेउब्बियहैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! ( सव्वत्थोवा जीवा ओरालिय सरीरस्स सव्वबंधगा, अबंधगा विसेसाहिया, देसबंधगा असंखेज गुणा) औदारिक शरीर के सर्वबंधक जीव सब से कम हैंक्यों कि ऐसे जीव उत्पत्ति के समय में ही होते हैं। अबंधक जीव इनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं, क्यों कि विग्रहगति में और सिद्धत्व आदि में इनका सद्भाव होता है । तथा देशबंधक जीव असंख्यातगुणित हैं। क्यों कि देशबंध का काल असंख्यातगुणा होता है। सू०४॥ महावीर प्रभुना उत्त२-“गोयमा !" उ गीतम! ( सव्वत्थोवा जीवा भोरालियसरीरस्स सव्वबधगा, अब'धगा विसेसाहिया. देसबधगा असंखेज्जगुणा) ઔદારિક શરીરના સર્વધક જી સૌથી ઓછાં છે, કારણ કે એવાં જીવે ઉત્પત્તિના સમયે જ હોય છે. અબંધક જીવ સર્વબંધ કરતાં વિશેષાધિક છે, કારણ કે વિગ્રહગતિમાં અને સિદ્ધત્વ આદિમાં તેને સદૂભાવ હોય છે. દેશબંધક જીવ અબંધકે કરતાં અસંખ્યાતગણી હોય છે, કારણ કે દેશબંધને કાળ અસંખ્યાતગણે હેય છે. આ સૂત્ર ૪ છે
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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