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________________ २४८ भगवतीसूत्रे पल्योपमानि उत्कर्पण स्थितिवर्तते, तेषु च प्रथमसमये सर्ववन्धको भवति, अत एवोत्कर्षतः समयन्यूनानि त्रीणिपल्योपमानि औदारिकशरीरिणां देशबन्धकालोभवतीति भावः। गौतमः पृच्छति-' एगिदियओरालियसरीरप्पओगवंधेणं भंते । कालओ केवच्चिरं होइ ? ' हे भदन्त ! एकेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगवन्धः खलु कालतः कालापेक्षया कियच्चिरं भवति ? भगवानाह-'गोयमा ! सबंधे एक्कं समयं देवबंधे जहन्नेण एक समयं उकोसेणं वावीसं बाससहस्साई समयूणाई' हे गौतम ! एकेन्द्रियौदारिक शरीरप्रयोगबन्धस्य सर्वबन्धः एक समयं भरति, को लेकर कहा गया है, क्यों कि औदारिक शरीर वालों की उत्कृष्टस्थिति तीनपल्पोपम की होली है। इसमें जो एक लमय कम किया गया है उसका कारण यह है कि जीव प्रथल समय में सर्वधक ही होता है और लवंबंध का काल एक समय का है अतः एक समय कम तीनपल्योपम की स्थितिवाला औदारिक शरीर वालों का देशबंधकाल उत्कृष्ट से है-यह बात सध जाती है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(एगिदिय ओरालिय सरीरप्पओगमधे भंते ! कालओ केवच्चिर होइ) हे भदन्त ! एकेन्द्रिय औदारिक शरीरप्रओगध काल की अपेक्षा से कबतक होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! (सव्वबंधे एक्कं समय, देसबंधे जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं यावीसं वाससहस्साई समयऊगाई) एकेन्द्रिय औदारिक शरीरप्रयोग धंध का सर्वबंध एक समयतक होता है और इसका देशबंध जघन्य से एक समयतक और સ્થિતિ હોય છેઆ ત્રણ પલ્યોપમમાંથી એક સમય ઓછો કરવાનું કારણ એ છે કે જીવ પ્રથમ સમયમાં સર્વધક જ હોય છે, અને સર્વબંધને કાળ એક સમયને છે આ એક સમયની ગણતરી દારિક શરીરવાળાના દેશબંધ કાળમાં થતી નથી. તેથી ઔદ્યારિક શરીરવાળા જીવોનો દેશબંધ કાળ ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ ત્રણ પપમ કાળ કરતાં એક ન્યૂન સમય પ્રમાણ કહ્યો છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-" एगिदिय ओरालिय सरीरप्पओगवंधे ण' भते । कालओ केवच्चिर होइ ? " सहन्त ! भेन्द्रिय मौरि शरी२ प्रयोग मध ४जनी अपेक्षा यां सुधी २७ छ ? उत्तर-“गोयमा !" है गौतम ! ( सवय धे एक्कं समयं, देसबधे जहण्गेण एक्कं समय उक्कोसेण बावीसंवाससहस्साई समयऊणाई) मेन्द्रिय मोहा२ि४ शरीर प्रयास अपना सवय એક સમય સુધી હોય છે અને તેને દેશબધ ઓછામાં ઓછા એક સમયને
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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