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________________ २३६ 'भगवती उत्कर्षे न त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमानि त्रिसमयाधिकानि, एकेन्द्रियौदारिकपृच्छा ? गौतम | सर्ववन्धान्तरं जघन्येन क्षुल्लकमंत्रग्रहणं त्रिसमयोनम्, उत्कर्षेण द्वात्रिंशतिः वर्षसहस्राणि समयाधिकानि, देशवन्धान्तरं जघन्येन एकं समयम् उत्कर्षेण अन्तर्मुहूर्तम्, पृथिवीकायिकै केन्द्रियपृच्छा ? गौतम ! सर्वबन्धान्तरं यथैव एकेपणेणं एक्कं समयं उक्को सेणं तेत्तीस सागरोवमाई तिसमयाहियाई) सर्वबंध' का अंतर जघन्य से तीन समय कम क्षुल्लक भवग्रहणपर्यन्त है और उत्कृष्ट से एक समय अधिक और पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम का है । तथा देशबंध का अंतर जवन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से तीन समय अधिक ३३ सागरोपम का है । (एगिदिय ओरालियपुच्छा ) हे भदन्त ! एकेन्द्रिय औदारिक शरीर के बंध का अन्तर काल की अपेक्षा कितना है ? ( गोयमा) हे गौतम । ( सव्वर्षधंतरं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमग्रऊणं उक्कोसेणं बावीसं वासंसहस्साई समयाहियाई, देसबंधंतरं जहणेणं एक्कं समयं उकोसेणं अंत) एकेन्द्रिय के औदारिक शरीर के सर्वबंध का अंतर जघन्य से तीन समय कम क्षुल्लक भवग्रहणपर्यन्त है और उत्कृष्ट से एक समय अधिक २२ हजार वर्ष का है । देशबंध का अंतर जघन्य से एक समय का है और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त का है । (पुढविकाइएदिय पुच्छा ) हे भदन्त । पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर के देवधर जहणे' एक्क समय उक्कोसेग तेत्तीस सागरोवमाइ तिसमया. हियाई ) सर्वण धतुं तर सोछामां मधु क्षुद्धा लवग्रह रतां त्रशु આછે સમય પન્તનું છે અને વધારેમાં વધરે તેત્રીસ સાગરેપમ કરતાં એક પૂર્વટિ અને એક સમય અધિકનું હાય છે. તથા દેશળ ધનુ અતર ઓછામાં આછું. એક સમયનુ' અને વધારેમાં વધારે ૩૩ સાગરાપમ અને ત્રણ સમયનું હોય છે. ( एगिदिय ओरालिय पुच्छा . ) हे लढा ! मेरेन्द्रिय मोहारि शरीर મધનું અંતરકાળની અપેક્ષાએ કેટલુ છે ? ( गोयमा ! ) डे गौतम ! ( सत्र्व बंध तर जहणेण खुड्डागं भवग्गहणं' तिसमयऊण, उक्को सेण बावीसं वास बहस्साइ समयाहियाई, देसबंध तर जहणेण' एक्क' समयं उक्कोसेण अतोमुहुत्त ) मेन्द्रियना भौहारिङ शरीरना સ ખધનું અંતર ઓછામાં ઓછુ ક્ષુલ્લક ભવગ્રહણ કરતાં ત્રણ ન્યૂન સમય પન્તનું અને વધારેમાં વધારે બાવીસ હજાર વર્ષ અને એક સમય પન્તનું છે. દેશમધનું અતર જઘન્યની અપેક્ષાએ એક સમયનું અને ઉત્કૃષ્ટની અપે क्षाभे भे मन्तर्भुङ्क्र्ततुः छे! ('पुढविक्काइयएगि 'दिय पुच्छा ) हे लहन्त ।
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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