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________________ २१४ भगवतीस्त्र पादितः, आलीनवन्धाश्लेपणादिचतुर्भेदयुक्तः प्रज्ञप्तः । गौतमः । पृच्छति-' से किं तं सरीरबंधे ? ' हे भदन्त ! अथ कः कतिविधः स शरीरवन्धः प्रज्ञप्तः ? 'भगवानाह- सरीरबंधे दुविहे पण्णत्ते ' शरीरवन्धो द्विविधः प्रज्ञप्तः 'तं जहापुन्बप्पभोगपच्चइए य, पडुप्पन्नप्पओगपच्चइए य' तद्यथा-पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकप, प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्यधिकश्च पूर्वः प्राक्कालासेवितः-प्रयोगः जीनव्यापारो वेदना कषायादिसमुद्घातरूपः प्रत्ययः कारणं यत्र शरीरवन्धे स एव पूर्वप्रयोगप्रत्ययिको बन्धः, एवं प्रत्युत्पन्नः अप्राप्तपूर्वो वर्तमानः प्रयोगः केवलिसमुद्घातलक्षणव्यापारः संहनन बंध के कथन हो जाने पर संहनन-बंध का कथन समाप्त हो जाता है। इस प्रकार आलीन बंध अपने श्लेषणावध-आदि चार भेदों से कथित किया जा चुका है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(से किं तं सरीरबंधे) हे भदन्त ! सादि सपर्यवसित बंध का तृतीय भेद जो शरीर बंध है वह कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं(सरीरबंधे दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! शरीर बंध दो प्रकार का कहा गया है (तं जहा) जैसे (पुचपओगपच्चइए य, पडुप्पन्नप्पओगपच्चइए य) पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक और प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्ययिक जिस शरीर बंध में पूर्वकाल में आसेवित प्रयोग-जीव व्यापार-वेदना-कषाय आदि समुद्घालरूप जीव व्यापार कारण होता है वही पूर्वप्रयोगप्रत्ययिक वंध है । अप्राप्तपूर्व केवलि समुद्धातरूप वर्तमानप्रयोग जिस शरीर बंध में કથન અહીં સમાપ્ત થાય છે. આ પ્રમાણે આલીન બંધના શ્લેષણબંધ આદિ ચાર ભેદનું કથન અહીં સમાપ્ત થાય છે. व गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मेरो प्रश्न पूछे छे है-" से कि त' सरीरबंधे ?” उ महन्त ! साहि सपर्यसित धनारे शरी२ मध નામને જે ત્રીજે ભેદ છે, તેનું સ્વરૂપ કેવું છે? અથવા શરીર બંધના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે? भडावीर प्रभुने। उत्त२-( सरीरबधे दुविहे पण्णत्ते-तंजहा ) 3 गौतम ! शरी२ मधन नीय प्रमाणे मे ५४२ ४द्या छ-( पुव्वप्पओगपच्चइए, पडु. पन्नप्पओगपच्चइए य, (१) प्रयोग प्रत्ययि मने (२) प्रत्युत्पन्न प्रयोग પ્રત્યયિક. જે શરીર બંધમાં પૂર્વકાળમાં સેવવામાં આવેલ પ્રગ-જીવ વ્યાપાર વેદના, કષાય આદિ સમુદ્રઘાત રૂપ જીવ વ્યાપાર કારણરૂપ હોય છે, તે બંધને પૂર્વપ્રયોગ પ્રત્યયિક બંધ કહે છે. અપ્રાપ્ત પૂર્વ કેવલિ સમુદુઘાત રૂપ વર્તમાન
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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