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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ० ९ सू० ३ प्रयोगबन्धनिद्रपणम् २०९ नाम् , सरसां-सरोवराणाम् , सरपंक्तिकानाम्-सरोकरश्रेणीनाम् , सर सर पङ्क्तिकानाम् महासरोवरश्रेणीनाम् , विलाङ्क्तिकाना-जलभृतगर्त श्रेणीनाम् , 'देवकुल-सभा-पन्चधूम-खाइयाणं फलिहाणं पागार-ट्टालग चरिच-दार-गोपुरतोरणाणं' देवकुल-सभा-पर्व-स्तूप-खातिकानाम् , परिखानाम्- खाई ' इति प्रसिद्धानाम् , प्राकार-अट्टालक-चरिक-द्वार-गोपुर-तोरणानाम् तत्र प्राकार:-दुर्गः, अहालका प्रसादोध्यभागः, चरिका-नगरदुर्गयोर्मध्यवर्तीमार्गः, द्वारं सामान्यद्वारम् , गोपुरम्नगरद्वारम् , तोरणं-विवाहोत्सवप्रसङ्गे पताकासहितरचितद्वारमागविशेपः तेषाम् , 'पासाय-घर-सरण-लेण-आवणाणं, सिंघाडग-तिय-चउक्च च्चर-चउम्मुह-महापह माईण, छहानिक्खिल्लसिलेससमुच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ' प्रासाद-गृह-शरणलयनाऽऽपणानाम् , तन मासादो-राजभवनम् , गृहम् , शरणं-स्थानविशेपः, यात्रिकाणां निवासरथानमिति भावः, लयनम् पर्वतवर्ती गृहविशेष आपणा हट्टइतिप्रसिद्धः, गुञ्जालिका, गोलाकार पुष्करिणी, सरोवर, सरपंक्ति, सरः सरः पंक्ति, अर्थात् महासरोवर श्रेणी, क्लिपंक्ति, (देवकुल) इत्यादि, देवकुल, सभा प्याऊ, स्तूप, स्वातिका परिघ, प्राकार-दुर्ग, अट्टालिका-मालाद का उर्ध्वभाग, चरिका-नगर और दुर्गका मध्यवर्तीमार्ग, हार, गोपुर-नगर द्वार तोरण-विवाह के प्रसंग पर पताका सहित रचित्त द्वार का भागविशेष (पासायघर ) इत्यादि, प्रासाद-राजभवन, घर, शरण-स्थानविशेष, लेण-गृहविशेष, आपण-बाजार, शृङ्गाटकाकारमार्गविशेष, त्रिकमार्ग चतुष्कमार्ग, चत्वरमार्ग, चतुर्मुखमार्ग और राजमार्ग, इन सब स्थान विशेषांका चूना द्वारा, कचरा द्वारा और श्लेष-बज्रलेप के समुच्चय द्वारा जो बंध होता है वह समुच्चयबंध है। श्लेषणाबंध में और समु. चयबंध में इतना ही अन्तर है कि उस बंध की अपेक्षा यह बंध चूना ४०२ए, all, गुलि ( २ पुरिए), सव२, २२:५डित, स२ स२: ५ ( महास३३५२नी श्रेणी), मिति , “देवकुल छत्यादि विभुस, सभा, प्याडी (उपा), स्तूप, ति, परिघ, ४१२ ( ), मा४ि (प्रासाहन BAI-11), यरि। ( नगर मनेन मध्यqा भा), दा२, गो५२ ( ना२६२), ताण, " पासाय घर त्या " प्रासाई ( २२ मन), घर, २२१ (स्थान विशेष), वY ( विशे५), श्या५५ (१२), श्रृंगार ४४२ मा, नि माग, यतु भाग, यत्१२ भाग, ચતુર્મુખ માર્ગ અને રાજમાર્ગ, આ બધાં સ્થાન વિશેનો સૂના દ્વારા, કચરા દ્વિારા અને ક્ષેપ–વાલેપના સમુચ્ચય દ્વારા જે બંધ થાય છે, તેને સમુચ્ચય બંધ કહે છે. લેવા બંધ અને સમુચય ofધમાં એટલે જ તફાવત છે કે
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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