SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रिका टी० श० ८ ९० ९ सू० ३ प्रयोगवन्ध निरूपणम् २०७ गणं अंतोमुद्दत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं, से त्तं लेसणावंधे ' जघन्येन अन्तर्मुहूम्, उत्कर्षेण संख्येयं कालं तिष्ठति, स एप श्लेषणावन्धः प्रज्ञप्तः । गौतमः च्छति' से किं तं उच्चयवंधे ' हे भदन्त ! अथ कः कतिविधः स उच्चबन्धः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - ' उच्चयबंधे जं णं तणरासीग वा, कट्टरासीण वा, उत्तरासीण वा, तुसरासीग वा, भुसरासीण वा, गोमयरासीण वा, अवगररासीण उच्चणं बंधे समुप्पज्जइ ' हे गौतम ! उच्वयवधो यत् खलु वणराशीनां वा यासपुञ्जानां, काष्ठराशीनां वा; पत्रराशीनां वा, तुपराशीनां वा, वुसराशीनां वा, से, लेप करने पर जो सुधा आदि का उनके साथ श्लेषणरूप संबंध होता है वह इलेषणाबंध है । यह इलेषणा संबंधरूप बंध जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्ततक और उत्कृष्ट से संख्यातकाल तक उन दोनों का आपस में बना रहता है। इसके बाद वह नियम से विनष्ट हो जाता है । अब गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं - ( से किं तं उच्चयबंधे ) हे भदन्त ! सादि सपर्यवसित बंध के भेद आलीन बंध का भेद जो उच्चहै वह कितने प्रकार का कहा गया है ? अर्थात् यह उच्चयबंध क्या है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( उच्चयबंधे जं णं तणरासीण वा, करासीण वा, पत्तरासीणं वा, तुसरासीण वा, भुसरासीण वा, गोयमरासीण वा, अवगररासीण वा, उच्चत्तेनं बधे समुप्पज्जह ) हे गौतम ! घास का जो ऊँचा ढेर लगा दिया जाता है, काष्ठों का जो ऊँचा ढेर लगा दिया जाता है, पत्तों का जो ऊँचा ढेर लगा दिया जाता સરેસ આદિથી લેપ કરવાથી ચુના આદિના તેમની સાથે જે ક્ષેત્રણુરૂપ સંબધ થાય છે, તે શ્ર્લેષણામધ કહેવાય છે. આ શ્લેષણા સંબંધ રૂપ બધુ ઓછામાં આછે. એક અન્તમુહૂત સુધી અને વધારેમાં વધારે સખ્યાતકાળ સુધી તે ખન્નેમાં અરસ્પરસની અન્દર ટકી રહે છે, ત્યાર બાદ તે નિયમથી જ તષ્ટ या लय छे. गौतमस्वाभीना प्रश्न- (से किं तं उच्चयत्र घे १) हे लहन्त | साहि सपर्य - વસિત મધના આલીનમધ નામના પ્રકારના જે ઉચ્ચયખંધ નામના ખીન્નેભેદ છે, તેનું સ્વરૂપ કેવુ' છે ? भडावीर अलुना उत्तर- ( उच्चय बांधे जं णं तणरासीण वा, कट्टर सीण वा, पत्तराखीण वा, तुसरासीण वा, भुखरासीण वा, गोमयरासीण वा, अवगररासीण वा, उच्चत्तेणं बंधे समुप्पज्जइ) डे गौतम ! धासना ने गया ढगसे। जी थे। ઢગલા કરવામાં આવે છે, લાકડાંના જે ઊંચા ઢગલે કરવામાં આવે છે, પાનને ४२वामां आवे छे. तुषेोना ? अया दगलो ४२वामां आवे छे, लुसा ( पराण )
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy