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________________ भगवतीसुत्रे १८६ स सादिकः अपर्यवसितः स खलु सिद्धानाम्, तत्र खलु यः स सादिकः सपर्यत्रसितः, स खलु चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-आलापनवन्धः, आलीनबन्धः, शरीरबन्धः, शरीरप्रयोगवन्धः, अथ कः स आलापनबन्धः ? आलापनबन्धो यः खलु तृणभाराणां वा, काष्ठभाराणां वा, पत्रमाराणां वा, पलालभाराणां वा, वेल्ल (पल्लव) भाराणां वा, वेत्रलता- वल्क वरत्रा रज्जु -चल्ली - कुश - दर्भादिभिः आलापनचन्धः समुत्पद्यते बंध है । (तत्थ पंजे से साइए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं) सादि अपवसित बंध सिद्ध जीव के प्रदेशों का है । ( तत्थ णं जे से साइए सपज्जबसिए से णं चव्विहे पण्णत्ते ) इनमें जो सादि सपर्यवसित बंध है वह चार प्रकार का कहा गया है । ( तं जहा ) जो इस प्रकार से है -- ( आलावणबंधे, अल्लियावणय घे, सरीरख घे, सरीरप्पओगवधे ) १ आलापनबंध, २ आलीनबंध, ३ शरीरबंध, ४ शरीरप्रयोगबंध । ( से किँ तं आलावणबधे ) हे भदन्त ! आलापनबंधका क्या स्वरूप है ? ( आलावणबंधे जं णं तणभाराण वा, कट्ठभाराण वा, पत्तभारण वा, पलालभाराण वा, वेल्लभाराण वा, वेत्तलया-वाग वरत्त - रज्जु - वल्लि - कुम- दग्भमाएहिं आलावणबधे समुप्पज्जइ) हे गौतम! आलापनबंध वह है - जो तृण 'के गट्ठों को, काष्ट के गट्ठों को, पत्र के गट्ठों को पलालके बोझों को, बेलोंके बोझों के, वेंत से - लता से, छाल से, वरना से, रस्सी से, मध भने (४) शरीर सायन धतु स्व३५ . छे. ( तत्थ ण' जे साइए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं ) सिद्ध बना अहेशन गंध साहि अय्र्यवसित होय छे. ( तत्थ णं जे से साइए सपज्जबसिए से विहे पण्णचे - तं जहा ) तेमांना ? साहि सपर्यवसित मध छे, तेना नीचे अभाषे यार अार छे- (अलावणबधे, अल्लियाव्रणव घे, सरीरबांधे, सरीरप्पओगबंचे) (१) आसायन अध, (२) मासीन मधु, ( 3 ) शरीर प्रयोग अध (से कि त आलावणषधे) हे लहन्त ! हे ? ( आलावणचे ज णं तणभाराण वा, कट्टभारण वा, पत्तभाराण वा, पलालभाराण वा, वेल्लभाराणवा वेत्तलयाबाग-वरत्त - रज्जु - वल्लि - कुस दव्भमा इएहि, आठवण समुपज्जइ ) हे गौतम ! यासायन अंध ते छेडे ने घासना भाराने, लाउडांना लाशने, पानना लाराने, धान्यरहित पराजनी गांसडीने, सतामोना भाराने, बताओोथी, छातेोथी, याभडानी होरीथी, शत्रु आहिनी डोरीथी, કાઇ વેલથી, નિર્મૂળ ઇર્ષાથી અને સમૂળ દૉથી ખાંધવાથી થાય છે. એટલે કે ઘાસ વગેરેના ભારાને લતા આદિ વડે જે આંધવાનુ' થાય છે, તેને આલા
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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