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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ८ उ. ८ सू ३ प्रयोगवन्धनिरूपणम् ___ १८५ लियसरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएणं मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पओगबंधे ॥ सू० ३ ॥ . छाया-अथ का प्रयोगवन्ध१ प्रयोगवन्धस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अना. दिको वा अपर्यवसितः, सादिको वा अपयवसितः, सादिको वा सपर्यवसितः, तत्र खल्ल यः सोऽनादिकः अपर्यवसितः, स खलु अष्टानां जीवमध्यप्रदेशानाम् , तत्रापि खलु त्रयाणां त्रयाणाम् अनादिकः अपर्यवसितः, शेषाणां सादिकः, तत्र खलु या . प्रयोगबंधवक्तव्यता 'से किं तं पओगवंधे ?' इत्यादि। सूत्रार्थ-(से किं तं पओगबंधे ) हे भदन्त ! प्रयोगवंध का क्या स्वरूप है ? (पओगबंधे तिविहे पण्णत्ते) हे गौतम! प्रयोगवंध तीन प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) प्रयोगबंध के वे तीन प्रकार ये हैं(अणाइए वा अपजवसिए, साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जपसिए ) अनादिअपर्यवसित, सादिअपर्यवसित, और सादिसपर्यवसित (तत्थ ण जे से अणाइए अपज्जवसिए, से णं अट्ठण्हं जीव मज्झपएसाणं) इनमें जो अनादि अपर्यवसित प्रयोगवंध है वह जीव के आठ मध्यप्रदेशों का होता है। (तत्थ विणं तिण्हं तिण्हं अणाइए अपज्जवसिए) इन आठप्रदेशों में भी तीन तीन प्रदेशों का जो बंध है वह अनादि अपर्यवसित बंध है। (सेसाणं साइए ) बाकी के सर्व प्रदेशों का सादि सपर्यवसित प्रयोगमवातव्यता" से किं त पओगबधेत्याह, सूत्रार्थ-(से कि त पओगब धे?) 8 महन्त ! प्रये मर्नु स्१३५ ठेवु छ १ (पओगबधे तिविहे पण्णत्ते) 8 गौतम ! प्रयोगमा ३ प्रश्न ४को छे. (तजहा) ते त्रय प्रशारे। नीय प्रमाणे - (अणाइए वा अपज्जवसिए, साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए) (१) मनाEिPA५ वसित (२) साहसपर्यवसित भने (3) सा अपपसित. (तत्यणं जे से अणाइए अपज्जवसिए से णं अट्ठण्डं जीवमझपएसाण ) तमाथा જે અનાદિ અપર્યવસિત પ્રવેગ બંધ છે, તે જીવના આઠ મધ્યપ્રદેશનો હોય छे. (तत्य वि णं तिण्हं तिण्हं अणाइए अपज्जवसिए) ते 18 प्रदेशमा ५g જે ત્રણ ત્રણ પ્રદેશને બંધ હોય છે, તે અનાદિ અપવસિત બંધ હોય छे. (सेसाण साइए ) माहीना सर्व प्रशोर साह स५ सित जाय भ २४
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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