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________________ 1 प्रका टीका ० ८ ० ८ सू० ५ कर्मप्रकृति - परीषदवर्णनम् १०१ ममताः १ गौतम । एवमेव, यथैव पविधवन्धकस्य | एकविधवन्धकस्य / खलु भदन्त ! सयोगिभवस्थ केवलिनः कति परीपहाः प्रज्ञप्ताः ' गौतम ! एकादशपरी पहाः प्रज्ञप्ताः, नव पुनर्वेदयति, शेषं यथा पड्विधवन्धकस्य । अबन्धकस्य खल्लु भदन्त ! अयोगिभवस्थ केवलिनः कति परीषहा प्रज्ञप्ताः १ गौतम ! एकादशEternet कई परीसहा पण्णत्ता ) हे भदन्त ! एक प्रकार के कर्म का बंध करने वाले वीतराग छद्मस्थ के कितने परीषह होते हैं ? (गोमा ) हे गौतम । ( एवं चेव जहेव छव्विहधगस्स ) जिस प्रकार से छह प्रकार के फर्मों का बंध करने वाले जीव के परीपहों का होना कहा गया है उतने ही परीषहों का होना एक प्रकार के कर्म का बंध करनेवाले वीतराग छद्मस्थ के कहा गया है । ( एगविहबंधगरस णं भते ! सजोगि भवत्थवलित कर परीसहा पण्णत्ता ) हे भदन्त | एकविधवं धक सयोगी भवस्थ केवलज्ञानी के कितने परीषह होते हैं ? ( गोयमा ) हे गौतम | एकविध बंधक सयोगी भवस्थ केवलज्ञानी के ( एक्कारस परीसहा पण्णत्ता) ग्यारह ११ परीषह होते हैं । (नवपुण वेएइ) परन्तु वह एक साथ नौ परीषहों का वेदन करता है । ( सेसं जहा छविवह बंधस्स ) बाकी का और सब कथन ६ प्रकार के कर्मों को बंध करने वाले जीव की तरह से जानना चाहिये। (अबंधगस्स णं भंते ! अजोगि भवत्थ केवलिस कह परीसहा पण्णत्ता ) हे भदन्त ! कर्मबंधरहित राग मत्थर कई परीसहा पण्णत्ता ? " हे लहन्त ! खेड प्राश्ना भना અધ કરનાર વીતરાગ છદ્મસ્થને કેટલા પરીષહો વેઠવા પડે છે ? 16 " गोयमा ! " हे गौतम ! एव चेव जहेव छव्हिव धगस्स ) छ પ્રકારના કર્મોને ખધ કરનાર જીવના જેટલા પરીષહા કહ્યા છે, એટલા જ પરીષહા એક પ્રકારના કર્મોના બંધ કરનાર વીતરાગ છદ્મથના પશુ કહ્યા छे. ( एगविह वधस्स णं भंते ! सजोगी भवत्य केवलिस कह परीसहा पण्णत्ता ) હે ભદન્ત ! એક પ્રકારના કમઁના ખધ કરનાર સયેાગી ભવસ્થ કેવળજ્ઞાનીના भेटला परीषडे! उद्या हे ? " गोयमा ! " हे गौतम भे! अहारना उनी अध कुरनार सयोगी अवस्थ ठेवणज्ञानीना ( एक्कारस परीसहा पण्णत्ता ) अगि यार परीषडे। उह्या छे. ( नव पुण वेएइ ) परन्तु ते खेड साथै नव परीष हो वहन हरे छे. ( सेसं जहा छव्विहब धगस्स ) माडीतुं समस्त धन छ अारना मना मध डरनार कवना उथन प्रभारी समरधुं (अब धगरस णं भवे ! अोगिभवत्थकेलिस कह परीक्षा पण्णत्ता ? ) डे लहन्त अभू
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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