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________________ म. टीका श८ उ. ७०२ प्रदेषक्रियानिमित्तकान्यतीर्थिकमतनिरूपणम् ७९७ गच्छन्तः, गमनं कुर्वन्तः, पृथिवीं पिश्चयथ, पिंट, पीडयथ, पृथिवीं विराधयथ इतिभावः । अभिहथ - पादाभ्यामाभिमुख्येन हथ, वर्तयथ- पादाभिघातेनैत्रश्लक्ष्णतां चूर्णतां वा नयथ, "लेषयथ-भूमिश्लिष्टां सबद्धां कुरुथ, संघातयथसंहतां कुरुथ, 'संघट्टेह, परितावेह, क्रिलावेड, उद्दवेड, स घट्टयथ- स्पृशथ - सघट्टी कुरुथ, परितापयथ- समन्तात् सतापयुक्तां कुरुथ, क्लमयथ - मारणान्तिक समुद्रघातं प्रापयथ, उपद्रवथ - मारयमतिभावः 'तरणं तुज्जे पुढत्रिं पेच्चमाणा जात्र उवमाणातिविह तिविदेणं असंजय - अविरय-जात्र एगंतवालायावि भवद्द ततस्तस्मात् कारणात् खलु यूयं पृथिवीं पिश्चयन्तः विषन्तो यावत् अभिघ्नन्तः, वर्तयन्तः, श् लेषयन्तः, संघातयन्तः, संघट्टयन्तः परितापयन्तः क्लमयन्तः, उपद्रवन्तस्त्रिविध कृतादिलक्षणं त्रिविधेन मनःप्रभृतिना करणेन असंयता, आर्यो ! जब आप लोग रीत -गमन-रीयमाणा करते हैं. तब उस समय पृथिवी को- पृथिवीकायिक जीव को आप लोग पीसते हैंअर्थात दबाते हुए चलते हैं, 'अभिहणह ' उसे अपने पैरों द्वारा आघात पहुँचाते हैं, ' वत्तेह ' पैरों के आघात से उसे चूर्ण २ कर देते हैं, 'लेसेह ' भूमि में भूमि को संबद्ध करते हैं 'संघाएह ' संहत करते हैं 'म घट्टेह, परितावेह, मिलावेह, उवद्दवेह ' उसे संघहित करते हैं, परितापित - सब ओर से मतापित करते हैं, उसे मारणान्तिक अवस्था में ला देते हैं, मार देते हैं 'तएणं तुज्झे पुढवि पेच्चमाणा जाव उवहवेमाणा तिविहं तिविहेणं असंजय अविरय जाव एतवाला यावि भव' इस तरह से पृथिवी को पीसते हुए यावत् उसे मारते हुए आप लोग त्रिविध प्राणातिपात को त्रिविध से करते हैं - अतः आप लोग असयत हैं. अविरत हैं, यावत् હું આર્યાં! તમે લેાકેા જ્યારે ગમન કરી હા, ત્યારે પૃથ્વીકાયિક જીવાને તમારા પગ તળે दुणावता यासो छो, “अभिहणह" तमे तभारा पगथी तेभने आधात पडे था। छे। ‘व्रत्तेह” तभाश यगना आाधातथी तभे तेभना यूरेथुरा : नाओ। छो, "लेसेह" तेसने लूमि साथै लहडी हो ।, "संधाएह" तेभने सडत ४श हो, "संघट्टे ह, परितावे, किलाषेह, उब वेह" तेमने सधट्टित (गोत्र) । छो, परितापित (सताय યુકત) કરે છે, તેને માણાન્તિક અવસ્થામાં લાવી દે છે અને મારી નાખે છે "तरण तुझे, पुढत्रिं पेच्चमाणा जाव उवद्दवेमाणा तिविहं तिविहेणं असंजय- अविश्य - जान एगंतवाला यात्रि भव" मा ते पृथ्वी अपने हणाववाथी લઇને મારવા પન્તની ક્રિયા કરનારા તમે àાકે ત્રિવિધ પ્રાણાતિપાતનુ ત્રિવિધે
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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