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________________ 6 ( प्र. टीका श.८ उ.७ . १ प्रद्वेषक्रियानिमित्तकान्यतीर्थिकमतनिरूपणम् ७८५ एकान्तवालाश्चापि भत्रथ, तएण ते अन्नउत्थिया ते येरे भगवते एवं बयासी' ततः खलु ते अन्ययूथिकाः अन्यतीर्थ कास्तान् स्थविरान भगवतः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अत्रादिषु :- 'केण कारणेण अम्हे अदिन्न गेण्डामो जात्र एगंतवाला यावि भवामो ? ' हे आर्या ! स्थविरा: ! केन कारणेन वयम् अदत्त' गृह्णीमः, गावत् - अदत्त भुञ्ज्महे, अदत्तं स्वदामहे, त्रिविधं त्रिविधेन अस यताः, अविरताः, अप्रतिहतपापकर्माणः, सक्रियाः, अमवृताः, एकान्तदण्डा', एकान्तवालाचापि भवामः ? 'तएण ते थेरे भगवंतो ते अन्नउत्थि एव वासी' ततःखलु ते स्थविरा: भगवन्तस्तान् अन्ययूथिकान् ख्यात पापकर्मवाले हो, सक्रिय हो, सबर रहित हो, एकान्तदण्ड सहित हो और एकान्तवाल भी हो तणं ते आनउत्थिया ते येरे भगवंते एवं वयासी' इस प्रकार से स गत उत्तर सुनकर उन अन्ययूथकों ने उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार से पूछा - ' केण कारणेण अम्हे अदिन्न गेन्हामो जाव एगंतवाला यात्रि भवामो ' हे आयें ! हम लोग कैसे तो अदत्त का आदान करते हैं, कैसे अदत्त वस्तु का भोजन करते हैं और कैसे विना दी हुई वस्तु को लेने वाले की अनुमोदना करते हैं, कैसे त्रिविध प्राणातिपात आदि को त्रिविध से सेवन करते हैं, और कैसे असयत, अविरत, अप्रतिहत, अप्रत्याख्यात पापकर्म वाले साबित होते हैं, कैसे सक्रिय (कर्मवधसहित ) अस वृत ( संवर रहित ) एकान्तदण्ड सहित और एकान्त बाल जाने जाते हैं ? तएणं ते थेरे भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी ' जब इस प्रकार से उन अन्ययूथिकों ने पूछा तो उन अभवाणा, सञ्ज्यि (उभधवाणा), असवृत (संपर रहित) अन्त ह सहित (सर्वथा आधुतियात सहित) भने अन्तमास या है। "तरणं ते अन्नउत्थिया ते येरे भगवंते एवं वयासी" या अभरने। सगत उत्तर सालजीने ते परतीथि अमे (अन्य भतवाहीसोमे) स्थविर लगवताने या प्रभा यूछयु - "केण कारण हे अदिन्न गण्हामो, जाव एगंतवाला यावि भवामो ?" हे मार्यो । मे तो जताना કે અમે કેવી રીતે અદત્ત વસ્તુને ગ્રહણ કરનારા, અદ્યત્તતા આહાર કરનારા અને અત્ત ગ્રહણુ કરવાની અનુમાદના કરનારા છીએ ? અમે કેવી રીતે ત્રિવિધ પ્રાણાતિપાત આદિનુ ત્રિવિધે સેવન કરનારા છીએ ? તમે અમને થા ા કારણે અસયત અવિરત અપ્રતિહત, અપ્રત્યાખ્યાત પાપકમ વાળા માનેા છે? વળી તમે અમને સક્રિય (કબંધ સહિત), અસ ઘૃત, એકાન્ત દંડ સહિત અને એકાન્તમાલ શા કારણે કડા છે? " "तरणं ते येरे भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं व्यासी” ते परतीर्थ होना 2
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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